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बुख़ारा ) गान्धार । आधुनिक कन्दहार, उत्तरीय और पूर्वीय बलोचिस्तान और ग़ज़नी--यहां पर आर्य राजा राज्य करते थे ) आदि दूर दूर तक के देशों में जाकर इस मत का प्रचार किया । इन में से बाल्हीक और गान्धार को छोड़ कर अन्य देशों में इस धर्म को जड़ जम गई । बद्ध धर्म का प्रभाव अब भी उन देशों में बना हुश्रा है । भारतवर्ष से चीन में कुछ बौद्ध परिव्राजक इस धर्म का प्रचार करने गये थे। विक्रमी सम्वत् के १६० वर्ष पूर्व इन लोगों का जाना सिद्ध होता है।
विक्रमी सम्बत्के ४ वर्ष पूर्वतक चीन में बौद्धधर्म बहुत शं घ्रता के साथ नहीं फैलसका, क्योंकि सब लोगोंका ध्यान इसकी और अ.कृष्ट न हुअा था। परन्तु जब (वि० पू० ४ वर्ष) चीन सम्राट् मिङ्ग-ती चीन के सिंहासन पर बैठे, तब यह चीन भर का धर्म हो गया । यहीं से यह जापान इत्यादि देशों में फैल गया । समय समय पर चीनी यात्री भारत में बौद्ध धर्म से सम्बन्ध रखने वाली नई बातें जानने के लिये प्राते रहे । उनकी प्रकाण्ड धर्म रुचि का इस से अच्छा पता लगता है।
माज तक दुनिया में जितने धर्म निकले हैं, उनमें से सब से अधिक अनुयायी इसी धर्म ने श्राकृष्ट किये हैं,दुनिया में बौद्ध सब से अधिक हैं। अाजकल इस धर्मका यरोप व अमेरिका में अधिक प्रचार हो रहा है। बहुधा विद्वान् पुरुष ईसाईमत छोड़कर बौद्धधर्म स्वीकार करते नाते हैं । इस मतके अनेक ग्रन्थों के अंगरेजी श्रादि भाषाओं में अनुवाद हो गये हैं। इन यूरोपियन लोगों ने पाली . भाषा बड़ी बड़ी कठिनाइयोंसे सोखकर, तथा बौद्ध ग्रन्थों
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