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(२५) ता के समान ब्राह्मणको भी वेद भाग अथवा माननीय मानने में उन्हीं ब्राह्मण ग्रंथों की युक्तियां क्यों न मानी जावें और स्वामीजी महाराज यह जो लिखते हैं कि वेदों में "परा विद्या न होती केन आदि उपनिषदों में कहां से आती” (भ्र० पृष्ठ १८ ) सो यहां भी मेरा अभिप्राय तो इतना ही है कि वेद के नाम से मंत्र भाग अर्थात् संहिता और ब्राह्मणों को मान कर जहां वेदों को अपरा कहा जाय वहां मंत्र
और ब्राह्मणों का कर्म काण्ड और जहां वेदों को परा कहा जाय वहां मंत्र और ब्राह्मणों का ज्ञान का. ण्ड मानना चाहिये और ऐसाही आज तक वैदिक हिन्दू परम्परा से मानते चले आये हैं अधिक जो कुछ स्वामीजी महाराज ने लिखा है वा आगे लिखें उस का तत्व पंडित लोग आप बूझ लेंगे हम फिर भी हाथ जोड़ कर स्वामीजी महाराज के चरणों में विनय पूर्वक विनती करते हैं कि आप एक क्षणमात्र पक्षपात और क्रोध रहित होकर सोचिये और सत्य को हाथ से न दीजिये सत्यमेव जयति नानृतं और मुझे तो यदि एक भी दयानन्दी के चित्त में यह बात जम जायगी कि स्वामीजी महाराज का मादेश विधाता का लेख अर्थात् पोप की तरह इनफेलिब्ल (infallible) नहीं है अपनी बुद्धि काम में लानी चाहिये और दूसरे पंडितों की भी सुननी चा
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