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( २६ ) हिये सनातन धर्म को अथवा जो बात परम्परा से चली आयी है एकाकी किसी एक के कहने सुनने से बेसमझे बूझे न छोड़ देनी चाहिये मैं कृतकृत्य और अपना सारा परिश्रम सफल समझंगा॥
निदान अब मैं इन सब बातों को एक ओर रख कर जो इस २२ पृष्ठ के भ्रमोच्छेदन में स्वामीजी महाराज का अभीष्ट खोजता हूं तो आदि से अंत तक यही अभीष्ट पाता हूं--यही अभीष्ट है यही अभिप्राय है यही कामना है यही इच्छा है यही ईप्सा है यही लालसा है-कि एक बार श्रीमत् पंडितवर धुरन्धर अज्ञानतिमिरनाशनकभास्कर बाल शास्त्री जी महाराज स्वामीजी महाराज के साथ शास्त्रार्थ स्वीकार करलें सज्जन पुरुषों का स्वभावही है कि याचकों की याचना पूरी करने में उद्योग करें मैं शास्त्रीजी महाराज के चरणों में पहुंचा और भ्रमोच्छेदन दिखलाया आज्ञाकी:-.
कि “भला आप के (शिवप्रसाद के) एक सहज से प्रश्न का तो उत्तर श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती जी से कुछ बना ही नहीं उत्तर के बदले दुर्वचनों की वृष्टि की यदि काशी के पण्डित उनसे शास्त्रार्थ करने को उद्यत भी हों उत्तर के स्थान में उन्हें वैसीही दुर्वचन पुष्पाञ्जलि का लाभ होगा इस से अतिरिक्त और कुछ भी सार उस में से नहीं निकलेगा सिवाय
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