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दूसरा वा पिछला
निवेदन (अब इस विषय में आगे कुछ नहीं लिखा जायगा )
एक पुस्तक भ्रमोच्छेदन नाम मेरे “निवेदन के उत्तर में" श्रीमत्स्वामि दयानन्द सरस्वतीजी का निमर्माण किया हुआ आया समझा कि अब अवश्य स्वामी जी महाराज ने यथा नाम तथा गुणः दया करके मेरे प्रश्न का उत्तर भेजा होगा बड़े उत्साह से खोल के देखा तो शिवप्रसाद कम समझ, आलस्यी, उसको संस्कृत विद्या में शब्दार्थ सम्बन्धों के समझने की सामर्थ्य नहीं, वह अयोग्य, उसकी समझ अति छोटी, वह अविद्वान्, अधर्म कर्मसे युक्त, अनधिकारी, उसके नेत्र फूट गये हैं, उसकी अल्प समझ, वह इवानके समान, जैसी उसकी समझ वैसी किसी छोटे विद्यार्थी की भी नहीं, उसकी उलटी समझ, वह प्रमत्त अर्थात् पागल, उसको वाक्य का बोध नहीं, वह अन्धानां मध्ये काणो राजा, तात्पर्यार्थ ज्ञानशून्य, पक्षपातान्धकार से बिचार शून्य, अशाखवित्, अव्युत्पन्न, व्यर्थ वैतपिटक, अन्धा, उसकी सिय्या आडम्बर युक्त लड़कपनकी बात, वह वादके लक्षण युक्त नहीं उसकी बुद्धि और आँखें अंधकारा
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