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हूं वेद स्वतः प्रमाण और ब्राह्मण परतः प्रमाण हैं इससे जैसे वेदविरुद्ध ब्राह्मण ग्रन्थोंका त्यागहोता है वैसे ब्राह्मण ग्रन्थों से वि. रुद्धार्थ होनेपर भी वेदोंका परित्याग कभी नहीं होसका क्योंकि वेद सर्वथा स
बको माननीयही हैं अब रहगया यह विचार कि जैसा संहिताही को ईश्वररोक्न निभ्रान्त सत्य वेद मानना होता है वैसा ब्राह्मण ग्रन्थों को नहीं इसका उत्तर मेरी वनाई ऋ. ग्वेदादि भाष्य भूमिकाके नवमें पृष्ठ से ६ लेके घर अटलासी के पष्ट तक वेदोत्पत्ति. वेदों का नित्यत्व. और वेद संज्ञाविचार विषयों को देख लीजिये वहां मैं जिसको जैसा मानता हूं सब लिखरक्खाहै इसी को बिचारपूर्वक देखनेसे सब निश्चय आपको होगा कि इन विषयों में जैता मेरा सिद्धान्त है वैसाही जानि लीजियेगा।
(दयानन्दसरस्वती)
काशी।
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