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स्वामीदयानन्दजीकाउत्तर
॥ ओ३म् ॥ सम्वत् १६३७ चैत शुदी १२ गुरुवार । राजा शिवप्रशादजी आनन्दित रहो आप का चैत शुक्ला ११ बुधवार का लिखा पत्र मेरे पास आया देखि के आप का अभिप्राय विदित हुआ उस दिन आप से और मुझ से परस्पर जो २ बातें हुई थीं तब आप को अवकाश कम होने से मैं न पूरी बात कह सका और न आप पूरी बात सुन सके क्योंकि आप उन साहबों से मिलने को आये थे आप का वही मुख्य प्रयोजन था पश्चात् मेरा और आप का कभी समागमन हुआ जो कि मेरी और आप की बातें उस विषय में परस्पर होतीं अब मैं आठ दश दिनों में पश्चिमको जाने वाला हूं इतने समय में जो आप को अवकाश होसके तो मुझ से मिलिये फिर भी बात होसकी है और में भी आप को मिलता परन्तु अब मुझ को अवकाश कुछ भी नहीं है इस से में आप से नहीं मिलि सकूंगा क्योंकि जैसा सन्मुख में परस्पर बातें होकर शीघ्र सिद्धान्त होसका है वैसा लेख से नहीं इसमें बहुत काल की अपेक्षा है । मेरा उत्तर
१ वैदिक
आपका प्रश्न
१ आप का मत क्या है
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