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( १० ) कि हे मैत्रेयि जो आकाशादि से भी बड़ा सर्व व्यापक परमेश्वर है उससे ही ऋक् यजुः साम और अथर्व ये चारों वेद उत्पन्न हुए हैं" परन्तु आपने याज्ञवल्क्यजी का यह वाक्य आधाही अपना उपयोगी समझ क्यों लिखा क्या इसीलिये कि शेषार्द्ध वादी का उपयोगी है? वाक्य तो यही है:--एवंवा अरेऽस्य महतो भूतस्य निश्वसितमेतद्यदृग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदो ऽथर्वागिरस इतिहासः पुराण वि. या उपनिषदः श्लोकाः सूत्राण्यनुव्याख्यानानि व्याख्यानानीष्टगं हुतमाशितं पायितमयंच लोकः परश्च लोकः सर्वाणिच भूतान्यस्यैवै तौनि सर्वाणि निश्वसितानि अर्थात् अरी मैत्रेयि इस महाभूत के यह
ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद इतिहास पुराण विद्या उपनिषद् श्लोक सूत्र अनुव्याख्या व्याख्या ; इष्ट हुत खाया पीया यह लोक परलोक सब भूत
सब निश्वसित हैं (५) मुझे इस समय और कुछ
• मंहिता के "ईश्वरमणीत" होने के लिये "परतःप्रमाण" शतपथ
ब्राह्मा का प्रमाण देते हैं जैसे किसी मुद्दई का गवाह गवाही दे कि मुद्दई का तमस्सुक सहा है पर मुद्दालेह की रसीद भी सच्ची है रुपमा चुक. गया और गुदई कड़े कि. गवाह झूठा है. भरोसे के योग्य नहीं परन्तु अपना-तपस्सुक दीक होने के प्रमाण में उसी
ग्रवार को प्रामे लाचे प्रमालिस प्रमाण (सवूत ) मांगे ...तो कहे मैं कहता न हूं. मेरादाबा.साहे ..
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