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( १२ ) चौथा शाब्द प्रमाण "प्राप्तों के उपदेश” पांचवां ऐतिह्य "सत्यवादी विद्वानों के कहे वा लिखे उपदेश” तो आपके निकट कात्यायन ऋषि "प्राप्त" और "सत्यवादी विद्वान्” नहीं थे (६) पृष्ठ ८२ में आप लिखते हैं कि बाह्मण में जमदाग्न कश्यप इत्यादि जो लिखे हैं सो देहधारी हैं अतएव वह वेद 'नहीं और संहिता में शतपथ बाह्मण (!) के अनुसार 'जमदग्नि का अर्थ चक्षु और कश्यप का अर्थ प्राण है अतएव वेदहै (!!)फिर आप उसी पृष्ठ में लिखते हैं कि "ब्राह्मणानीतिहासान्पुराणानिकल्पान् गाथानाराशंसीः” (७) “इस वचन में ब्राह्मणानिसंज्ञी और इतिहासादि संज्ञा है” तो इसयुक्तिसे बृहदारण्यक का वचन जो मैंने ऊपर लिखा है उसमें भी क्या उपनिषद संज्ञी और इतिहास पुराणादि संज्ञाहै अथवा ऋग्वेदादि क्रमानुसार उनका संज्ञी वा संज्ञा है ? पृष्ट ८८ पंकि १२ में आप लिखते हैं कि “बाह्मण+++
(६) भाई ! आपही कहो कि कात्यायन ऋषिजी को झूठबोलने का क्या प्रयोजन था क्या कोई उनका भी मुकदमा किसी अंगरेजी अदालत वा कचहरी में पेश था भला वह झूट लिखते तो समको महकाली लोग उसे कब चलने देते पर जो हो दयानन्दजी लेखात्यायवजी को झूठा बनाया तो में पूंछताहूं कि जब कात्यायनजी
झडे छहरे तो अब दयानन्दनी की बातयोंही कौन मान लेगा? 10)इस का अर्थ बहुत स मर्थन ब्राह्मण (और ) इतिहास (और) पुराण (और)
क र ) गाथा ( और ) नाराशंसी
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