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( ११ ) . तर्क वितर्क आवश्यक नहीं इतना कहना अलम् कि आपके इस प्रमाण से तो कि जो बृहदारण्यक ब्राह्मण का है जैसे वेद ईश्वर प्रणीत हैं वैसे ही उपनिषदादि सब ईश्वर प्रणीत हैं यदि इसका अर्थ यह कीजियेगा कि उपनिषद् जीव प्रणीत है तो आपका चारों वेद भी वैसाही जीव प्रणीत ठहर जायगा आपने संहिता स्वतः प्रमाण और ब्राह्मण को परतः प्रमाण लिखा और फिर संहिताके स्वतः प्रमाण सिद्ध करने को उन्हीं परतः प्रमाण ब्राह्मणों का आप प्रमाण लातेहैं सो इस व्याघात से छुटने के लिये यदि कुछ उत्तर हो आप रुपा करके शीघ्र लिख भेजें तब तक में आप की भाष्य भूमिका आगे नहीं देखंगा पृष्ठों को कुछ उलट पुलट किया तो विचित्र लीला दिखाई देती है आप पृष्ठ ८१ पनि ३ में लिखते हैं “कात्यायन ऋपि ने कहा है कि मंत्र और बाह्मण ग्रन्थों का नाम वेद है” पृष्ठ ५२ में लि. खतेहैं प्रमाण ८ हैं और फिर पृष्ठ ५३ में लिखते हैं
(५)यह तो बड़ी हँसीकी बात है कि स्वामीजी महाराजने जिस वचन को संहिता "ईश्वर प्रणीत" होने के लिये प्रमाण दिया है उसमें से चारों वेद का नाम तो लेलिया और वेदों के आगे जो उपनिषदादि का नाम लिखा है उसे सम्पूर्ण छोड़ दिया मानो यह समझा कि हमारे सिवाय किसी ने वृहदारण्यक उपनिपद् देखाही नहीं है।
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