________________ (6) तीर्थों की यात्राएं की थीं। सिद्धाचलनी, सम्मेतशिखरजी, पावापुरी, राजगृही, आदि कई तीर्थों की यात्राएं तो आपने कई दफे की / आप निप्त किसी भी तीर्थमें जाते थे, बराबर विधिपूर्वक और शान्ति के साथ यात्रा करते थे। सेठ गोडीदासनीने अपने जीवन में और भी अनेक शुभ कार्य किये / उदाहरणार्थ-सं. 1958 में शुभकार्य। आपने बड़ी धूमधाम के साथ पंचमी तप का उद्यापन किया था, और अच्छा द्रव्य व्यय कर के जैनधर्म की प्रमावना की थी। इस उद्यापन में एक बात की खास विशेषता थी, और वह यह कि-इस शुभ प्रसंग पर आपने जो स्वामित्रात्सल्य-प्रीति भोजन किया था, उस में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखते हुए श्वेताम्बरदिगम्बर दोनों सम्प्रदायों को निमंत्रित किया था। आप की उदारता, आप के ऐक्य-प्रेम का यह खासा उदाहरण है। सं० 1974 में आपने चतुर्थ व्रत (ब्रह्मचर्य व्रत) अङ्गीकार किया था, जिस की खुशी में अपनी सारी बिरादरी में प्रतिघर एक एक रुपया और एक एक श्रीफल बांटा था / - सं० 1979 में मुनिराज श्री विवेकसागरजी के उपदेशसे, एक उपाश्रय, जो कि-मंदिरजी की लागतसे बना था, उस की लागत के 220 1) रु. देकर श्रीपंच को अर्पण किया।