Book Title: Dharm Deshna
Author(s): Vijaydharmsuri
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 13
________________ (4) प्रातःकाल 4-4 // बजे उठना, शौचादि से निवृत्त हो कर सामायिक व प्रतिक्रमण करना / पश्चात् जैन बालक-बालिकाओं को धार्मिक अभ्यास कराना / पंच प्रतिक्रमण ही नहीं, जीवविचार, नवतत्त्व, दंडक, संग्रहणी तक का भी आप अभ्यास कराते थे / ( एक गर्भ श्रीमंत होते हुए खुद शिक्षक हो करके बैठना, और बिरादरी के बच्चों को अपने छोटे भाई किंवा पुत्र समझ कर अध्ययन कराना, यह कितनी महत्त्व की बात है ) पश्चात् मंदिर में जाकर एक अथवा दो सामायिक करना और स्वाध्याय करना / साधु मुनिराजों का जोग हो तो व्याख्यान श्रवण करना / अन्यथा, जो भाई नित्य सामायिक करने को आते, उनको शास्त्रीय बातें सुनाते / पश्चात् विधिपूर्वक स्नान करके प्रभु पूजा करते / द्रव्य-भाव से पूजा करने में आपको करीब 1 // घंटा लगता / करीब 1 बजे भोजन करके आप दुकान पर जाते / और नीतिपूर्वक व्यापार करते / दुपहरके समय में कुछ समय आप वर्तमान पत्र भी पढ़ते / वर्तमान पत्रों को पढ कर सामाजिक वर्तमान परिस्थितियों के अभ्यास करने का भी आप को पूरा शोख था। प्रायः कोई ऐसा जैनपत्र नहीं होगा, जो आप न मंगवाते हों। 5 बजे भोजन करने के पश्चात् आप नित्यप्रति देवसी प्रतिक्रमण करते / फिर मंदिर में जाकर प्रभु-भक्ति में-मननों को गाने में तल्लीन हो जाते / पश्चात् जो स्नेही आपके पास बैठने को आते उनके साथ ज्ञानचर्चा करते / फिर शयन करते /

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