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भजन संख्या
पृष्ठ संख्या २१. भविन-सरोरूह सूर, भूरिगुणपूरित अरहता २२. प्रभु थारी आज महिमा जानी २३. तुम सुनियो श्री जिननाथ अरज इक मेरी जी २४. और अबै न कुदेव सुहावै २५. उरग-सुरग-नरईश शीस, जिस आतपत्र त्रिधरे २६. मोहि तारो जी क्यों ना २७. नाथ मोहि तारत क्यों ना २८. हो तुम त्रिभुवन तारी, हो जिन जी २९. सुधि लीज्यौ जी म्हारी शास्त्र-स्तुति ३०. जय जय जग भरम, तिमिर हरन जिन धुनी ३१. धारा तो बैना में सरधान घणो छ म्हारे ३२. जिन बैन सुनत, मोरी भूल भगी ३३. सुन जिन वैन, श्रवण सुख पायो ३४. जब तैं आनन्दजननि दृष्टि परी माई ३५. और सबै जग द्वंद मिटावो लो लाओ जिन आगम ओरी ३६, जिनवाणी जान सुजान रे ३७. नित पीज्यों धीधारी, जिनवानि सुधासम जान के ३८. धन धन साधर्मीजन मिलन की घरी ३९. अब मोहि जान परी भवोदधि तारन को है जैन ४०. ऐसा मोही क्यों न अधोगति जावे गुरु-स्तुति ४१. ऐसा योगी क्यों न अभय पावै
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