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७ बोल पृष्ठ १५ से १७ तक । मिथ्यात्वी ने सोलमी कला पिण न आवे एहनों न्याय पाठ ( उ०म०१ गा०४४)
८ बोल पृष्ठ १७ से १८ तक। प्रथम गुणठाणा ना धणी रो तप आज्ञा बाहिरे थापवा सूयगटाङ्ग नो नाम लेवे ते झूठा छै। पाठ ( सूय० श्रु० १ ० २ उ० १ गा० ६)
है बोल पृष्ठ १८ से १६ तक। मिथ्यात्वी ना पचखाण किण न्याय दुपचखाण छै ( भ० श०७ उ० २)
१० बोल पृष्ठ २० से २० तक। प्रथम गुणठाणे शील व्रत रे ऊपर महावीर स्वामी रो न्याय ( मा० ध्रु०१ म०६)
११ बोल पृष्ठ २१ से २२ तक । मिथ्यात्वी रो अशुद्ध पराक्रम संसार नो कारण छै पिण शुद्ध पराक्रम संसार नो कारण न थी। पाठ (सूय० श्रु० १ ० ८ गा० २३ )
१२ बोल पृष्ठ २३ से २३ तक। सम्यग्दष्टि में पिण पाप लागे। वीर भगवान् रो कथन पाठ ( आचा. अ०१५)
१३ बोल पृष्ठ २४ से २४ तक। . सम्यगदुष्टि ने पाप लागे। ते वली पाठ ( भ० श० १४ उ०१) .
® १५ बोल पृष्ठ २५ से २७ तक। प्रथम गुणठाणे शुद्ध करणी छै आज्ञामाहि छै एहनों प्रमाण ।
इस मिथ्यात्विक्रियाऽधिकार में प्रेस के भूतों को कृपा से १४ बोल की संख्या के स्थानपर १५ बोल हो गया है। अतः पागे सर्व संख्या ही इसी क्रम के अनुसार हो चुकी है अधिकार में ३० बोल हो गये हैं वास्तव में २६ बोल ही हैं। उसी प्रकार यहां अनुक्रमणिका में यो १४ बोल की संख्या छोड़नी पड़ी है।
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