Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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सम्यक्त्वको प्राकृतमें "सम्मत" कहते हैं । धर्ममें आस्थावान् सम्यग्दृष्टि ही इस शिखरकी ऊँचाईको माप सकता है। अतः उसका 'सम्मेत शिखर' नाम सार्थक ही है । इसी प्रकार पावापुरीके सम्बन्धमें लेखक द्वारा स्वानुचिन्तन प्रकट किया गया है। प्राचीन भारत में पावा नामकी एक नहीं, बल्कि तीन नगरी प्रसिद्ध थीं, किन्तु जैनागमों में उल्लिखित मगध जनपदकी पावानगरी ही समीचीन प्रतीत होती है । जैनागमों में वर्णित पंच पहाड़ियोंका वर्णन भी विद्वान् लेखकने भली भाँति किया है । इनके अतिरिक्त भी बिहारके अन्य कुछ प्रमुख जैनatter वर्णन प्रस्तुत निबन्ध में समाहित है, जो निःसन्देह ही एक स्वतन्त्र पुस्तकका विषय बन सकता है ।
डॉ० शास्त्रीके सभी निबन्ध शोधपूर्ण हैं । उन्होंने उनमें शास्त्रीय, ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक एवं वैज्ञानिक सभी विषयोंका मूल भावानुगामी अध्ययन प्रस्तुत किया है । वे भारतीय ज्योतिष एवं जैनगणितके भी अधिकारी विद्वान् थे । अतः उन्होंने जैनागमों के नामोल्लेख- पूर्वक ऋतु, अयन, दिनमान, दिनवृद्धि, दिनहास, नक्षत्रमान, नक्षत्रोंकी विविध संज्ञाओं तथा ग्रहोंके विमानोंके स्वरूप और विस्तार तथा ग्रहोंकी आकृतियों आदिको विस्तार पूर्वक चर्चा की है । ज्योतिष एवं गणित विषयक प्रायः सभी विधाओं पर उन्होंने संक्षेपमें सुन्दर प्रकाश
मण्डल,
है | शोध अनुसन्धित्सु उनके इन निबन्धोंसे शोधकी दिशाओंका संकेत भलीभांति प्राप्त कर सकते हैं । इतना ही नहीं, ऐतिहासिक दृष्टिसे ज्योतिष एवं गणित विषयों पर रचना करने वाले विद्वानों और उनकी कृतियोंका भी लेखकने यथायोग्य प्रमाण रूपमें विवेचन किया है । यद्यपि यह विवेचन संक्षिप्त है, फिर भी ये निबन्ध प्राचीनता व नवीनता के तुलनात्मक रूपको लेकर चलने के कारण गवेषकों एवं जिज्ञासु पाठकोंकी दृष्टिसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमितिगणित आदिके सिद्धान्तोंका कहीं-कहीं तुलनात्मक रूपसे और कहीं-कहीं वैदिक-चिन्तकोंसे भिन्नताका यथास्थान उल्लेख किया गया है । जैनाचार्योंने मूलतः सभी विषयोंका प्रतिपादन किया है। उनमें क्या-क्या भिन्नता एवं विशेषताएँ हैं, यही बतानेका मुख्य प्रयोजन रहा है । एतद्विषयक गम्भीर अध्ययन करनेवाले शोधकगण भी निष्पक्षतासे वस्तु स्थितिको तथा प्रामाणिकताको जाननेके लिए इन निबन्धोंका विशेष रूपसे अध्ययन व उपयोग कर सकते हैं । सामान्य पाठकों की दृष्टिसे " अंगविद्या ” नामक निबन्ध सर्वाधिक रोचक एवं लोकोपयोगी बन पड़ा है ।
इतिहास - खण्ड के अन्तर्गत " जैन इतिहासकी प्राचीर पर कुछ भूले-बिसरे प्रसंग" नामक निबन्ध भी अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं मार्मिक है | ग्वालियरके निकटवर्ती प्रक्षेत्रोंमें जैनोंका जो पुरातात्विक वैभव बिखरा पड़ा है, उसका संरक्षण तथा क्रमबद्ध इतिहासके रूपमें प्रकाशन होना नितान्त आवश्यक है । डॉ० शास्त्रीने ग्वालियर से लगभग ७६ मील दूर दक्षिण-पश्चिम में तथा शिवपुरीसे ४४ मील दूर उत्तर-पश्चिममें एक उपत्यकाके ऊपर स्थित दूबकुण्डके प्राचीन जैन मन्दिर व शिलालेखका उल्लेख कर बताया है कि किसी राजाने आक्रमण कर सोने-चांदी की विविध मूर्तियोंको भग्न कर अनेक मूर्तियोंको तालाब में डूबा दिया था, इसलिए उसका नाम डूबकुण्ड - दूबकुण्ड पड़ गया । कालके दुष्प्रभावसे यह मन्दिर भूमिसात हो गया है, उसकी छतें भी गिरती जा रही हैं। ऐसे प्राचीन जैन तीर्थ तुल्य स्थानोंका सर्वेक्षण तथा पुरातात्त्विक अनुसन्धान करना - कराना अनिवार्य है । इसके अतिरिक्त भो डॉ० शास्त्री