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आप्तवाणी-६
होता रहता? नहीं होता । उसमें संतोष किसलिए होता है? 'हम तो अपने घर पर जाएँ तभी नींद आती है' वह बुद्धि का आशय है। खुद के घर पर भले ही झोंपड़ी हो ! हम उससे कहे, 'अरे, तेरी खाट तो इतनी ढीली हो गई है।' फिर भी वह कहेगा, 'नहीं मुझे तो उसमें ही नींद आएगी । मुझे इस बंगले में नींद नहीं आएगी।' इन आदिवासियों को रोज़ खीरपूड़ी खिलाएँ तो उन्हें वह पसंद नहीं आएगा । दो-तीन दिनों में ही चुपचाप कहे बिना चला जाएगा । उसे ऐसा लगेगा कि मैं कहाँ यहाँ पर फँस गया।
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कुछ लोग पैसा नहीं हो, फिर भी क़ीमती कपड़े पहनते हैं, जबकि कुछ लोग तो खूब पैसे हों फिर भी.... वह बुद्धि का आशय !
फादर गालियाँ देता हो, फिर भी उसे वही फादर अच्छे लगते हैं ! मदर गालियाँ देती हो फिर भी वही मदर अच्छी लगती है ! फादर को वही बेटा अच्छा लगता है। पूरी जिंदगी बेटे से बात नहीं करता, लेकिन मरते समय सारा बच्चे को ही दे देता है । अरे ! पूरी जिंदगी भतीजे से चाकरी करवाई, लेकिन दे दिया बेटे को ? यह बुद्धि का आशय कहलाता है !
दादा के भी बेटे और बेटी गुज़र गए । तो उनके बुद्धि के आशय में ऐसा था कि यह क्या झंझट, यह क्या परेशानी ! बुद्धि के आशय में नौकरी करना नहीं था, यही कि, 'बस, नौकरी नहीं करूँगा ।' तो नौकरी नहीं करनी पड़ी। यानी बुद्धि के आशय के अनुसार सबकुछ होता रहता है ।
प्रश्नकर्ता : यानी जो व्यवहार, जो निमित्त, जो संयोग मिलते हैं उनके पीछे आशय काम करता है?
दादाश्री : आशय के बिना कुछ भी मिलता ही नहीं ।
प्रश्नकर्ता : अब जो बुद्धि का आशय है, वह पिछले जन्म की चिंतना का परिणाम है ?
दादाश्री : चिंतना नहीं, आशय, बुद्धि का आशय ही है। पिछले जन्म के बुद्धि के आशय थे, उनका यह फल आया । बुद्धि का आशय हो, तो उसे सट्टेबाज़ मिल जाता है। बाहर निकले कि उसे रेसवाला मिल जाता