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आप्तवाणी-६
अभी तो हर एक की चीकणी फाइल होती है । चीकणी फाइल नहीं लाऐ होते, तो वर्षों तक ज्ञानी के पास बैठने की ज़रूरत नहीं पड़ती। प्रश्नकर्ता : दादा, ऐसा कुछ कीजिए कि फटाक से फाइलें खत्म हो जाए।
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दादाश्री : ऐसा है कि आत्मा की जो शक्ति है, वह जब तक प्रकट नहीं होगी, तब तक पूर्णकार्य नहीं होगा । अब यदि मैं कर दूँ तो आपकी शक्ति प्रकट हुए बिना ही रह जाएगी । प्रकट तो आपको ही करनी चाहिए न? आवरण तो तोड़ना पड़ेगा न? और आपने तय किया कि 'इन फाइलों का निकाल करना ही है', तभी से वे आवरण टूटने लगेंगे। उस के लिए आपको कुछ भी मेहनत नहीं करनी है । सिर्फ आपको तो ऐसा भाव ही करना है। सामनेवाली फाइल टेढ़ी चले, फिर भी आपको तो फाइल का समभाव से निकाल करना है।
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आपको तो आत्मा को निरालंब करना है । निरालंब नहीं होगा तो अवलंबन रह जाएँगे और अवलंबन रहेंगे, तब तक एब्सोल्यूट नहीं हो पाएगा ! निरालंब आत्मा, वह एब्सोल्यूट आत्मा है । तो वहाँ तक आपको पहुँचना है। भले इस भव में नहीं पहुँचा जा सके, उसमें हर्ज नहीं है । अगले भव में तो वैसा हो ही जानेवाला है, यानी इस भव में तो आपको आज्ञा का पालन करके समभाव से निकाल ही करना है । वह बड़ी आज्ञा है, और चीकणी फाइलें, वे कितनी होंगी? वे कोई थोड़े ही दो सौ - पांच सौ होंगी? दो-चार ही होंगी, और असल मज़ा ही, जहाँ पर चीकणी फाइल हो, वहाँ पर आता है न!
प्रश्नकर्ता : कईबार चीकणी फाइल का निकाल करते-करते बहुत भारी पड़ जाता है, बुखार आ जाता है !
दादाश्री : वे सारी निर्बलताएँ निकल जाती हैं । जितनी निर्बलता निकली, उतना बल आपमें उत्पन्न होगा। पहले था, उसके मुकाबले आपको अधिक बल महसूस होगा ।
हम एक गाँव में कोन्ट्रैक्ट का काम करने गए थे। पुल बनाना था,