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आप्तवाणी-६
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वह भी गुनाह है। वास्तव में संग रखना ही मत और रखो तो उसके लिए पूर्वग्रह रहना ही नहीं चाहिए। 'जो भी हो, वह ठीक है' ऐसा रखना।
यह तो बहुत सूक्ष्म 'साइन्स' है। अभी तक ऐसा ‘साइन्स' प्रकट नहीं हुआ। हर एक बात बिल्कुल नई 'डिज़ाइन' में है और फिर पूरे 'वर्ल्ड' को काम में आए ऐसा है।
प्रश्नकर्ता : इससे पूरा व्यवहार सुधर जाएगा?
दादाश्री : हाँ, व्यवहार सुधर जाएगा और लोगों का 'मोक्षमार्ग' सरल हो जाएगा। व्यवहार सुधारना, वही सरल मोक्षमार्ग है। यह तो मोक्षमार्ग लेने जाते हुए व्यवहार बिगाड़ते रहते है और दिनों दिन व्यवहार उलझा दिया है।
बड़ौदा से अहमदाबाद जाते हुए उत्तर में ८० मील होगा, ऐसा कहा हो, परंतु लोग दक्षिण की तरफ़ चलें तो कितने मील बढ़ जाएँगे? ठेठ कन्याकुमारी तक कितने मील हो जाएगा? गाड़ी की स्पीड चाहे जितनी भी बढ़ाए परंतु अहमदाबाद दूर जाएगा या नज़दीक आएगा?
प्रश्नकर्ता : दूर जाएगा।
दादाश्री : इसी तरह लोगों ने व्यवहार उलझा दिया है। तरह-तरह के जप-तप किसलिए हैं? इसीलिए तो 'अखा भगत' चिल्ला उठे थे कि 'त्याग-तप, वह टेढ़ी गली।' टेढ़ी गली में घुसा कि खत्म हो गया। अब उस टेढ़ी गलीवाले से पूछे तो वह कहेगा कि, 'नहीं, हम मोक्षमार्ग में हैं।' इस ओर भगवान आएँ और उन्हें पूछे कि, 'यह कैसा है साहब? ये दोनों अलग-अलग तरह का बोल रहे हैं। इनमें से कौन सही है?' तब भगवान कहेंगे कि, "इसे टेढ़ी गली' कहते हैं, वह भी गलत है और ये लोग 'सही मोक्षमार्ग है', ऐसा कहते हैं, वह भी गलत है!"
भगवान का कहने का भावार्थ क्या है कि, 'भाई, वह टेढ़ी गली में हो तो उसमें तेरा क्या गया? तू अपनी तरह से दर्शन करने जा न? भगवान बहुत सयाने होते हैं। उनमें बहुत सयानापन होता है, थोड़ी भी भूल नहीं होती!