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आप्तवाणी-६
तो आंकड़ा छूट जाएगा। इसलिए महावीर भगवान ने आलोचना, प्रतिक्रमण
और प्रत्याख्यान, ये तीनों चीजें एक ही शब्द में दी हैं। दूसरा कोई रास्ता है ही नहीं। अब खुद प्रतिक्रमण कब कर सकता है? खुद को जागृति हो तब, 'ज्ञानीपुरुष' के पास से ज्ञान प्राप्त हो, तब वह जागृति उत्पन्न होती है।
आपको तो प्रतिक्रमण कर लेना है, ताकि आप ज़िम्मेदारी में से छूट जाओ।
मुझे शुरूआत में सब लोग 'अटेक' करते थे न? परंतु फिर सब थक गए! अपना यदि उसके सामने आक्रमण हो तो सामनेवाले नहीं थकते!
यह जगत् किसी को मोक्ष में जाने दे, ऐसा नहीं है। इतना अधिक बुद्धिवाला जगत् है। इसमें से यदि सावधानीपूर्वक चलेगा, समेटकर चलेगा तो मोक्ष में जाएगा!
शुद्धात्मा और प्रकृति परिणाम 'निज स्वरूप' का भान होने के बाद, 'मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसा बोला तब से निर्विकल्प होने लगता है और उसके अलावा अगर और कुछ बोला कि, 'मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ', वे सब विकल्प है। उससे पूरा संसार खड़ा हो जाता है, और शुद्धात्मा बोलनेवाला निर्विकल्प पद में जाता है। अब इसके बावजूद भी इन 'चंदूभाई' के तो दोनों कार्य चलते ही रहेंगे, अच्छे और बुरे दोनों कार्य चलते ही रहेंगे। यों उल्टा भी करेगा और सीधा भी करेगा, यह प्रकृति का स्वभाव है। सिर्फ उल्टा या सिर्फ सीधा कोई कर ही नहीं सकता। कोई थोड़ा बहुत उल्टा करता है तो कोई अधिक उल्टा करता है!
प्रश्नकर्ता : नहीं करना हो तो भी हो ही जाएगा?
दादाश्री : हाँ, हो ही जाएगा, इसलिए 'मैं शुद्धात्मा हूँ', ऐसा तय करके यह सब उल्टा-सुल्टा देख! तुझे उल्टा-सुल्टा अंदर आए, तब तुझे मन में ऐसी कल्पना नहीं करनी है कि 'मुझसे उल्टा हो गया, मेरा शुद्धात्मा बिगड़ गया!' शुद्धात्मा अर्थात् मूल तेरा ही स्वरूप है। यह जो उल्टा-सीधा