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आप्तवाणी-६
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हमें बिना बात के लप्पन छप्पन (ज़रूरत से ज्यादा बातचीत करना) क्यों बघारनी है? लप्पन छप्पन करेंगे तो आते हुए भी शादी (आपसी व्यवहार करते-करते हिसाब बंधना) होगी और जाते हुए भी शादी होगी। यानी सबकुछ सही तरीके से होना चाहिए, बहुत अतिशय में उतरने जैसा नहीं है।
हमें तो सबको फिट हो, ऐसा रखना चाहिए। मेरा किसी के साथ मतभेद नहीं पड़ता। मतभेद पड़े तब से जान जाता हूँ कि मेरी भल है और वहाँ मैं तुरंत जागृत हो जाता हूँ। आप मेरे साथ चाहे कितना भी टेढ़ा बोलो, परंतु उसमें आपकी भूल नहीं है। भूल तो मेरी है, सीधा बोलनेवाले की है। क्योंकि मैं यह ऐसा कैसा बोला कि इसे मतभेद पड़ा! यानी जगत् को 'एडजस्ट' किस तरह हों, वह देखना है। आप सामनेवाले का हित चाहते हों, जैसे कि अस्पताल में कोई मरीज़ हो, आप उसके संपूर्ण हित में हो, इस वजह से आप उसे 'ऐसा करो, ऐसा मत करो' ऐसा कहते रहते हो, परंतु पेशन्ट ऊब जाता है कि यह क्या झंझट बिना बात का?
यानी जिस पानी से मूंग पकें, उस पानी से मूंग पकाने हैं। आजवा (बड़ौदा का एक सरोवर) के पानी से नहीं पकें तो हमें दूसरा पानी डालना चाहिए, कुएँ का डालें और फिर भी नहीं पकें तो गटर का पानी डालकर भी मूंग पकाओ, हमें तो मूंग पकाने से काम है!
सामनेवाले को समाधान दो हम सभी को सीखना क्या है, कि मतभेद नहीं पड़े ऐसा बर्ताव करें। मतभेद पड़ा कि आपकी ही भूल है, आपकी ही कमज़ोरी है। सामनेवाले को हमसे समाधान होना ही चाहिए। सामनेवाले के समाधान की ज़िम्मेदारी अपने सिर पर है।
आपसे सामनेवाले का समाधान नहीं हो तो आप क्या समझते हो? सामनेवाले में कम समझ है, ऐसा ही समझते हो न?
प्रश्नकर्ता : हाँ।