________________
आप्तवाणी-६
हितकर और मित होना चाहिए। मित अर्थात् सामनेवाले को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि 'ये चाचा बेकार ही बोलते जा रहे हैं !' सामनेवाले को जो पसंद आई, वही वाणी सत्य है । जिस किसीने इस सत्य की पूँछ पकड़ी, उन सभी ने वह मार खाई है।
प्रश्नकर्ता : मस्का मारना, उसका नाम सत्य है? गलत 'हाँ' में हाँ मिलानी ?
१८६
दादाश्री : वह सत्य नहीं कहलाता । मस्का मारने जैसी वस्तु ही नहीं है। यह तो खुद की खोजबीन है, खुद की भूल के कारण दूसरों को मस्का मारता है यह। सामनेवाले को फिट हो जाए, ऐसी अपनी वाणी बोली जानी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : 'सामनेवाले को क्या होगा', ऐसा विचार करने बैठें तो कब पार आएगा?
दादाश्री : उसका विचार आपको नहीं करना है। आपको तो चंदूभाई से कहना है कि प्रतिक्रमण करो। बस इतना ही कहना है । यह 'अक्रम विज्ञान' है। इसलिए प्रतिक्रमण रखना पड़ा है । बात को सिर्फ समझना ही है। यह तो विज्ञान है। इसलिए बात ही समझ लें तो कुछ स्पर्श कर सके ऐसा नहीं है और चंदूभाई को आप जब पूछो, आप शुद्धात्मा हो या चंदूभाई ? तब कहते हैं ‘मैं शुद्धात्मा हूँ, बस ! फिर और क्या पूछने को रहा? फिर वह टेढ़ा करे तो उसका सुख रुक जाएगा, बस इतना ही ।
जगत् में आप सभी को पसंद आओगे तो काम आएगा। जगत् को आप पसंद नहीं आए, तो वह आपकी ही भूल है । इतना समझ लेने की ज़रूरत है। इसलिए ‘एडजस्ट एवरीव्हेर ।' इस झंझट का तो अंत ही नहीं आएगा न? मैं अलग कहूँ, यह अलग कहे, तो लोग तो सुनेंगे ही नहीं न? लोग तो क्या कहते हैं कि आपकी बात हमें फिट होनी चाहिए।
हमें बहुत लोग कहते हैं कि, 'दादा, आपको यह आता होगा और वह आता होगा', तब मैं कहता हूँ कि, 'अरे भाई, मुझे तो कुछ भी नहीं आता। इसीलिए तो यह मैं आत्मा का सीख गया ।'