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आप्तवाणी-६
'मेरा अभिप्राय 'गलत है" ऐसा कहना, ताकि आपका मन बदले। नहीं तो मन नहीं बदलेगा।
कुछ लोगों की वाणी बहुत बिगड़ी हुई होती है, वह भी अभिप्राय के कारण होता है। अभिप्राय के कारण कठोर वाणी निकलती है, तंतीली (तीखी, चुभनेवाली) निकलती है! तंतीली अर्थात् खुद ऐसा तंतीला बोलता है और सामनेवाले को भी वैसा करने को उकसाता है!
अनंत जन्मों से लोकसंज्ञा से चले हैं, उसी का यह सब भरा हुआ माल है! यानी जो अभिप्राय भरे हैं, उनका झंझट है। जो अभिप्राय नहीं रखे, उनका कोई झंझट नहीं होता!
कमिशन चुकाए बिना तप हमें तप करने ज़रूर हैं, परंतु घर बैठे आ पड़े हैं वे, बुलाने नहीं जाना पड़े ! पुण्यशाली के लिए सभी चीजें घर बैठे आ जाती हैं। गाड़ी में कभी कोई सामने आकर झगड़ पड़े तो हमें समझना चाहिए कि यह आ पड़ा तप है ! कि 'ओहोहो! मुझे ढूँढते-ढूँढते घर पर आया!' इसीलिए तप करना चाहिए उस समय। भगवान महावीर प्राप्त तप के अलावा और कोई तप नहीं करते थे। जो प्राप्त तप आ पड़ा हो, उस तप को धकेलते नहीं थे! ये तो क्या करते हैं? नहीं आया हो उसे बुलाते हैं कि 'परसों से मुझे तीन दिन के उपवास करने हैं', और जो आया हो, उसका तिरस्कार करते हैं। कहेंगे, 'मेरा पैर द:ख रहा है, किस तरह सामायिक करूँ? यह पैर ही ऐसा है।' और फिर पैर को गालियाँ भी देते हैं ! 'मेरा पैर ऐसा है' ऐसा कोई किस तरह जानेगा? किसी को जानने दिया, तो वह तप नहीं कहलाएगा। ऐसा यदि कोई जान गया, तो वह तप में से हिस्सा ले गया, ऐसा कहा जाएगा। तप हम करें, और फायदे में से दो आने वह खा जाए, ऐसा किस काम का? उसने हमारी बात सुनी उसके बदले उसे दो आने मिल जाते हैं। ऐसे आश्वासन लेकर कमिशन कौन दे?
मुंबई से बड़ौदा कार में आना था और बैठते ही कह दिया कि, 'सात घंटे एक ही जगह पर बैठे रहना है। तप आया है!' हम आपके साथ