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आप्तवाणी-६
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दादाश्री : तू उसे 'जानता' तो है परंतु ‘देखता' नहीं है न! प्रश्नकर्ता : हम जानें और देखें तो क्या हो जाएगा फिर?
दादाश्री : 'जानना' और 'देखना', वे दोनों एक साथ होते हैं, तब परमानंद होता है।
प्रश्नकर्ता : ‘जानना' और 'देखना', वह किस प्रकार से होता है?
दादाश्री : तुझे पूरे चंदूभाई दिखें। 'चंदूभाई क्या कर रहे हैं' वह सभीकुछ दिखेगा। चंदूभाई चाय पी रहे हों तो दिखेगा, दूध पी रहे हों तो दिखेगा, रो रहे हों तो दिखेगा। गुस्सा हो रहे हों तो वह भी दिखेगा, चिढ़ रहे हों तो वह भी दिखेगा, नहीं दिखेगा? आत्मा सभीकुछ देख सकता है। यह तो 'जानना' और 'देखना', दोनों साथ में नहीं होता है, इसलिए तुझे परमानंद उत्पन्न नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : 'जानना' और 'देखना', वे दोनों किस तरह हो सकता
है?
दादाश्री : उसका हम अभ्यास करें, तो होगा। हर एक चीज़ में उपयोग रखें, जल्दबाज़ी या धांधली नहीं करें, शायद कभी गाडी में चढते समय भीड़ हो तो भूलचूक हो जाए और 'देखना' रह जाए, तो उसे 'लेट गो' कर लेंगे। परंतु बाकी सब जगह तो रह सकता है न?
परमात्मयोग की प्राप्ति
प्रश्नकर्ता : दादा, आपका 'ज्ञान' प्राप्त करने के बाद माया परेशान करती है, उसे निकाल दीजिए न?
__ दादाश्री : ‘स्वरूप का ज्ञान' प्राप्त करने के बाद माया कभी भी आती ही नहीं। माया फिर खड़ी ही नहीं रहती, परंतु आप तो उसे बुलाते हो न, 'मौसी, यहाँ आइए। मौसी, यहाँ आइए!'
प्रश्नकर्ता : आप माया को मारिए न? दादाश्री : मैं मारने आऊँ या आपको मारना है? मुझे तो आपका