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आप्तवाणी-६
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पूरा ब्रह्मांड हिल जाए, ऐसी शक्ति भीतर भरी पड़ी है। मैंने खुद देखी है, तभी तो मैंने अनावृत्त किया! परंतु आप किन लालचों में पड़ गए हो? किसलिए? पूरा ब्रह्मांड सामने आ जाए, फिर भी उसका लालच क्यों हो? इसलिए अच्छी तरह योग जमाओ, रात और दिन! अब नींद कैसे आए? अब पूरा-पूरा योग कर लो। दस लाख वर्षों में यह सहजासहज योग प्राप्त हुआ है, बीवी-बच्चों, कपड़े-लत्ते सहित ! बार-बार ऐसा योग प्राप्त हो सके, ऐसा नहीं है। यह तो परमात्मयोग है! यह कोई ऐसा-वैसा योग नहीं है!
बहुत ही जागृति की ज़रूरत है, संपूर्ण जागृति! जागृति के ऊपर जागृति कि जो अंतिम प्रकार की जागृति है, वह अपने यहाँ पर है ! जगत् जहाँ जगता है, वहाँ हमें सोते रहना चाहिए। हम जहाँ पर जगे हैं, वहाँ पर जगत् सोया हुआ ही है। केवलज्ञान अर्थात् संपूर्ण जागृति! कोई कमी न रहे, ऐसी जागृति ! बस, जागृति की ही ज़रूरत है। जितनी जागृति बढ़ी उतना केवलज्ञान के नज़दीक आया। जागृति में खुद के सभी दोष दिखते हैं, परंतु यदि खुद निष्पक्षपाती हो चुका हो, तब! खुद शुद्धात्मा हो गया, यानी निष्पक्षपाती हो गया। 'मैं चंदभाई हूँ' वहाँ पर पक्षपात है। खुद वकील, खुद जज और खुद ही अभियुक्त। फिर जजमेन्ट कैसा आएगा?
प्रश्नकर्ता : मैंने तो ऐसा निश्चित किया हुआ है कि मुझे यह सब चिंता करने की क्या ज़रूरत है? दादा की छत्रछाया है, फिर क्या?
दादाश्री : इससे तो सब कषाय घुस जाएँगे! वे समझेंगे कि यहाँ पर यह खोखला है! आपको पुरुष बनाया है अब। पुरुष नहीं बनाया हो, तब तक दादा हैं। अब तो पुरुषार्थ आपके हाथ में रख दिया है। दादा कभी ही, अड़चन के समय हाज़िर होते हैं, परंतु रोज़-रोज़ हाज़िर नहीं होते।
यह परमात्मयोग आपको दिया है। अब फिर से चकना मत। किसी जन्म में नहीं मिले, ऐसा है यह। इस जन्म में ही हुआ है यह ! यह ग्यारहवाँ आश्चर्य है इस काल का! यानी कि योग प्राप्त हो गया है। यह तो पुण्य से आपको योग मिल गया है, जिससे ऊपर तक देख आए हो, कुछ हद तक का तो सभी कुछ देख लिया है आपने और आपके लक्ष्य में है न कि क्या क्या देखा है आपने?