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आप्तवाणी-६
थोड़ी-बहुत ही ध्यान रखना है। बाकी सारा आपको सँभालना है। अब आप पुरुष हो गए और पुरुष होने के बाद आप पुरुषार्थ में आए हो। पुरुष होने के बाद माया आए ही कैसे? यदि एक घंटे का योग शुरू किया हो तो जगत् हिल उठे, ऐसा तो मैंने आपको योग दिया है! पूरा ब्रह्मांड हिल उठे, ऐसा योग मैंने आपको दिया है! परंतु ऐसे योग का आप उपयोग नहीं करो तो क्या होगा?
प्रश्नकर्ता : ब्रह्मांड नहीं हिलता, परंतु मैं हिल जाता हूँ।
दादाश्री : यह योग हाथ में आ जाए तो कोई छोड़ेगा नहीं। एक घंटे में तो कुछ का कुछ उड़ाकर रख दे!
प्रश्नकर्ता : आज तक मुझे ऐसा था कि दादा मुझे कभी खुद ही कहेंगे, इसलिए मैं कुछ कहता ही नहीं था।
दादाश्री : दादाजी सभी कुछ करते हैं, परंतु वह तो कोई बिल्कुल ही कमज़ोर पड़ गया हो तो वहाँ पर रक्षण रख देना पड़ता है। वर्ना ऐसे तो अंत ही नहीं आएगा न! दादा को बहुत काम करना होता है। दादा को पूरे दिन योग करना होता है। अमरीका में घूमना पड़ता है, इंग्लैन्ड में घूमना पड़ता है, दिन-रात घूमना पड़ता है। पूरे वर्ल्ड पर योग चल रहा है। पूरे वर्ल्ड में शांति होनी चाहिए। धर्म की बात तो जाने दो, परंतु शांति तो होनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : हमारा तो जहाँ नहीं करना है, वहाँ होता है और जो करना है, वह नहीं हो पाता।
दादाश्री : वहीं पर पुरुषार्थ है, पुरुष बनने के बाद फिर पुरुषार्थ क्यों नहीं हो पाता? अब दिशामूढ़ नहीं होना है। अब तो एक ही दिशा, बस पुरुषार्थ, पुरुषार्थ और पुरुषार्थ!
अनंतशक्तियाँ व्यक्त हो जाएँ, ऐसा यह योग दिया है। इसलिए ज़ोरदार पुरुषार्थ करो घर जाकर! दूसरे सभी मच्छरों से कहें कि 'गेट आउट! नोट अलाउड!'