________________
आप्तवाणी-६
२३९
___अब माया दूर रहनी चाहिए। माया घुसनी नहीं चाहिए। यह तो छोटी-छोटी चीजें देकर, आपको अजगर की तरह निगल जाती है। जब कोई बड़ी घटना हो जाए, तभी आप शुद्धात्मा में जाते हो! यानी सभी चीज़ों में जागृती रहनी चाहिए। इसमें भूल हो जाए, तो वह नहीं चलेगा।
प्रश्नकर्ता : परंतु दादा, फिर से वह मार्ग से भटक नहीं जाना चाहिए
न?
दादाश्री : भटक नहीं जाना चाहिए, परंतु माया अभी तक उसे परेशान करती है। माया कब तक परेशान करती है? तीन वर्षों तक। अब ये क्रोध-मान-माया-लोभरूपी माया तीन वर्ष तक अंडरग्राउन्ड रह सके वैसा है, और भूखी रह सके ऐसा है। हमने उसके हाथ की सत्ता खत्म करके आपके हाथ में सौंप दी, इसीलिए वे सब अंडरग्राउन्ड चले गए हैं। अब वे फिर से वापस आने की तैयारियाँ करते रहेंगे। अतः यदि तीन वर्षों तक यह योग रहे, दादा से दूर नहीं हो तो वे वापस नहीं पैठेंगे, चले जाएँगे। फिर 'सेफसाइड' हो जाएगी! फिर तो हमारी आज्ञा में आसानी से रहा जा सकेगा। हम जानते हैं कि ऐसा किसलिए होता है, इसलिए पहले से ही सचेत रहने को कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : दैवीशक्ति और आसुरीशक्ति, दोनों हमेशा लड़ते ही हैं?
दादाश्री : हाँ, वे लड़ते ही हैं। परंतु उसमें आपको कृष्ण की तरह काम लेना चाहिए कि 'मैं तेरे पक्ष में हूँ।'
प्रश्नकर्ता : आप हमें सुदर्शन दे दीजिए न!
दादाश्री : सुदर्शन आपको दिया हुआ ही है। एक उँगली का नहीं परंतु दसों उँगलियों का दिया हुआ है। तो सभीकुछ काटकर एक घंटे में तो पूरा कौरववंश नाश कर दे ऐसा है!
मूल पुरुष की महत्ता प्रश्नकर्ता : किसी योग्य व्यक्ति को आप अपनी शक्तियाँ देकर जाएँगे न?