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आप्तवाणी-६
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और सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम में जाने का प्रयोग करना चाहिए। और आगेपीछे तो होता ही नहीं है। रोज़-रोज़ यह रिकॉर्ड बजानी, वह क्या अच्छा कहलाता है? __यह जो परमात्मयोग मैंने आपको दिया है उस योग में, जितना हो सके उतने उस योग में ही रहो। आप खुद परमात्मा बनो, ऐसा योग दिया है! बीच में कोई रोक नहीं सकेगा और संसार की सारी रामायण पूरी होगी, अठारह व्यूह रचना का युद्ध जीत जाएँगे, क्योंकि शुद्धात्मा ही कृष्ण हैं और वे ही जितानेवाले हैं।
हमारी आज्ञा, वही 'हम' हैं, 'खुद' ही हैं। हमारी पाँच आज्ञा में रहने का प्रयत्न करो।
सामने आए हैं मोक्षस्वरूप करोड़ों अवतारों में भी प्रकट नहीं हो, वैसे ये एक्सपर्ट मिले हैं, तो यहाँ पर आपका काम हो जाए, ऐसा है। यह तो 'मैं' केवलज्ञान में नापास हुआ, इसलिए आपके काम आया, मोनिटर के तौर पर!
___ यह आपका ही आपको दे रहा हूँ। ज्ञान तो आपका ही है। मेरा ज्ञान नहीं है। मैं तो निमित्त हूँ बीच में। यह आपका ‘खुद का' ही ज्ञान है। अभी यह ठंडक बढ़ रही है, वह भी आपकी ही है। जागृति बढ़ती जाएगी, वह भी आपकी खुद की ही है। यह मेरी दी हुई जागृति नहीं है। यह सब आपका खुद का ही है!
यह थ्योरी ऑफ एब्सोल्यूटिज़म है! यह समझ में आता है आपको, नहीं समझ में आए तो ना कह दो। हमें जल्दी नहीं है। हम सब तो समझने के लिए बैठे हैं। हम किसी 'थ्योरी' को 'अडोप्ट' करने के लिए नहीं बैठे हैं। यह थ्योरी ऐसी नहीं है कि जो आपको अडोप्ट करवानी हो! 'सच्ची बात' 'समझ' में आ जाए, वही अपनी थ्योरी!
जय सच्चिदानंद