________________
आप्तवाणी- -६
मनुष्य मात्र में कमज़ोरी तो होती ही है न? इन कमज़ोरी के गुणों के कारण मनुष्यपन कायम है। मनुष्य की कमज़ोरी जाए तब मुक्त हो जाएगा। परंतु यह कमज़ोरी जाए ऐसी नहीं है। उसे कौन निकाले ? ‘ज्ञानीपुरुष' के अलावा और कोई भी कमज़ोरी नहीं निकाल सकता न! उस कमज़ोरी का ‘ज्ञानीपुरुष' खुद विवेचन कर देते हैं और उसे निकाल देते हैं। ‘ज्ञानीपुरुष' तो, घोड़ा भले ही कितना भी अटक गया हो तो भी उसे आगे ले जाते हैं। कान में फूंक मारकर, समझाकर, मंत्र पढ़कर भी आगे ले जाते हैं। वर्ना मार डालो फिर भी घोड़ा नहीं खिसकता । घोड़ा तो क्या, अरे बड़े-बड़े हाथी हों, वे भी जहाँ पर अटकण आ जाए, वहाँ पर हिलते नहीं।
२११
प्रश्नकर्ता: परंतु भगवन, पिछले जन्म के कुछ तीव्र संस्कार होंगे कि जिससे हम आपके चरणों में आए हैं ?
दादाश्री : संस्कार के आधार पर ही तो यह मिलता है, लेकिन इसे छुड़वाता कौन है? अटकण छुड़वा देती है, अटकण जुदा कर देती है! इसलिए अटकण को पहचान लेना कि अटकण कहाँ पर है? फिर वहाँ पर सावधान और सावधान ही रहना। तू अटकण को पहचान गया है? चारों ओर से पहचान गया है ? ऐसे पीछे से जा रहा हो तो भी पता चले कि यह अटकण चली अपनी ! हाँ, इतना अधिक सावधान रहना चाहिए !
अटकण तो ज्ञानी ही ढूँढ सकते हैं, और कोई नहीं ढूँढ सकता। भोले मनुष्य की अटकण भोली होती है, वह जल्दी छूट जाती और कपटी मनुष्य कीअटकण कपटी होती हैं और वह तो बहुत विकट होती हैं !
अटकण से अटका अनंत सुख
अब बिल्कुल ‘क्लीयरन्स' अंदर हो जाना चाहिए। यह 'अक्रम ज्ञान' मिला और खुद को निरंतर सुख में रहना हो तो रहा जा सकता है, ऐसा हमारे पास ‘ज्ञान' है। इसलिए अब किस तरह से अटकण से छूटे, किस तरह उससे हम छूट जाएँ, ऐसा हल ले आना। उसके लिए आलोचनाप्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान करके भी हल ले आना चाहिए। पहले सुख