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आप्तवाणी-६
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परंतु खुद उसे नहीं स्वीकारे तो फिर क्या परेशानी है? स्वीकारे तब रोग घुसेगा न? जो वाह-वाह नहीं स्वीकारते, उन्हें कुछ भी नहीं होता। वाह-वाह को खुद स्वीकार नहीं करता, इसलिए उसे कोई नुकसान नहीं होता और जो तारीफ करते हैं, उन्हें पुण्य बँधता है। सत्कार्य की अनुमोदना का पुण्य बँधता है। यानी ऐसी सब अंदर की बात है। ये तो सब कुदरती नियम हैं।
जो लोग तारीफ करते हैं, उनके लिए वह कल्याणकारी है। और जो सनते हैं. उनके मन में भी अच्छे भाव के बीज डलते हैं कि 'यह भी करने जैसा है तो सही। हम तो ऐसा जानते ही नहीं थे!'
प्रश्नकर्ता : हम अच्छा काम तन, मन, धन से करते हों परंतु कोई अपना खराब ही बोले, अपमान करे तो उसके लिए क्या करें?
दादाश्री : जो अपमान करता है, वह भयंकर पाप बाँध रहा है। अब इसमें अपना कर्म धुल जाता है और अपमान करनेवाला तो निमित्त बना।
प्रतिक्रमण की गहनता प्रश्नकर्ता : इसमें कभी हमें बुरा लग जाता है कि मैं इतना सब करता हूँ, फिर भी यह मेरा अपमान कर रहा है?
दादाश्री : आपको उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। यह तो व्यवहार है। इसमें सभी प्रकार के लोग हैं। वे मोक्ष में नहीं जाने देते।
प्रश्नकर्ता : वह प्रतिक्रमण हमें किस चीज़ का करना है?
दादाश्री : प्रतिक्रमण इसलिए करना है कि इसमें मेरे कर्म का उदय था और आपको ऐसा कर्म बाँधना पड़ा। उसका प्रतिक्रमण करता हूँ और फिर से ऐसा नहीं करूँ कि जिसके कारण किसी को मेरे निमित्त से ऐसा कर्म बांधना पड़े।'
जगत् किसी को मोक्ष में जाने दे, ऐसा नहीं है। सभी प्रकार से ये आंकड़े हमें खींचकर ले ही आते हैं। इसलिए, यदि हम प्रतिक्रमण करें