________________
अंग को बहुत दबाएँ तो क्या होगा? एक
[२४]
अबला का क्या पुरुषार्थ? प्रश्नकर्ता : क्रोध आए तो दबाना चाहिए या निकाल देना चाहिए?
दादाश्री : क्रोध दबाने से दबाया जा सके, ऐसी चीज़ नहीं है। वह तो आज दबाया, कल दबाया, स्प्रिंग को बहुत दबाएँ तो क्या होगा? एक दिन वह पूरी उछल जाएगी। अभी आप क्रोध को तात्कालिक दबाते हो वह ठीक है, परंतु कभी न कभी वह नुकसानदेह होगा। भगवान ने क्या कहा था कि क्रोध का विचारपूर्वक पृथ्थकरण कर दो। हालाँकि विचारपूर्वक करने में तो कई अवतार निकल जाएँगे। विचार करने के अवसर से पहले तो क्रोध हो जाता है। वह तो बहुत जागृति हो, तभी क्रोध नहीं होता, परंतु वह जागृति, अपने यहाँ पर जब 'ज्ञान' देते हैं, तब उत्पन्न होती है। फिर क्रोध-मान-माया-लोभ उनकी 'बाउन्ड्री' में आ जाते हैं। जागृति उत्पन्न हो जाती है। इसलिए आपको क्रोध होने से पहले ही जागृति आ जाती है और पृथ्थकरण होकर सबकुछ समझ में आ जाता है कि कौन गुनहगार है। हकीकत में यह क्या हुआ? सब समझ में आ जाता है, फिर क्रोध करता ही नहीं न?
क्रोध करना और दीवार पर सिर मारना, ये दोनों एक समान हैं। उसमें बिल्कुल भी फर्क नहीं है। ये क्रोध-मान-माया-लोभ, ये सब कमज़ोरी कही जाती हैं, और वह कमज़ोरी जाए तो परमात्मा प्रकट होंगे। कमज़ोरी रूपी आवरण हैं। और 'प्रिज्युडिस' बहुत रहता है। एक व्यक्ति को जैसा मान बैठे हों, वह हमें वैसे का वैसा ही लगता रहता है। हमेशा के लिए वह वैसा नहीं रहता। प्रति सेकन्ड पर परिवर्तन होता है। पूरा जगत् परिवर्तनशील है। निरंतर परिवर्तन होता ही रहता है।