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आप्तवाणी-६
प्रश्नकर्ता : परंतु हमारे प्रति अन्याय हो रहा हो तो?
दादाश्री : अन्याय हुआ तो मार खाओ न आराम से! नहीं तो फिर भी, जाओगे कहाँ? कोर्ट में जाकर वकील ढूँढ निकालो, वकील मिल जाते
हैं न?
प्रश्नकर्ता : वकील लाएँ, वह दखलअंदाज़ी कहलाएगी न?
दादाश्री : फिर वकील आपको झिड़केगा, 'बेअक्ल मूर्ख लोग! साढ़े दस बजे आए, जल्दी क्यों नहीं आए?' वह फिर ऐसे गालियाँ देगा। इसलिए फिर सीधे रहकर आप अपना झटपट निपटा दो न।
दख़ल में उतरने जैसा नहीं है। यह काल विचित्र है। अच्छी तरह बोलते हुए मैंने किसी को देखा ही नहीं। ऐसा बोलते हैं कि हमें हेडेक हो जाए। यह तो कहीं भाषा कहलाती होगी?
प्रश्नकर्ता : तो इस हिसाब से तो अच्छा कहना या गलत कहना, वह भी दखलअंदाज़ी हुई न?
दादाश्री : कुछ बोलना ही मत। वह पूछे उतना ही जवाब देना। लंबा झंझट मत करना। हमें क्या लेना-देना? इसका अंत ही नहीं आएगा।