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आप्तवाणी-६
यह कमज़ोरी खुद निकालने जाओगे तो एक भी नहीं जाएगी, बल्कि दो और घुस जाएँगी, इसलिए जिनकी कमज़ोरी निकल गई है, उनके पास जाओ तो वहाँ पर आपका हल आ जाएगा। संसार का हल आएगा ही नहीं। पूरा जगत् भटक रहा है। इसका कारण यही है कि तरण तारणहार पुरुष मिलने चाहिए। आपको पार उतरना है, वह तय है न?
सुलझा हुआ व्यवहार, वही सरल मोक्षमार्ग दादाश्री : अब वे जो कमज़ोरियाँ हैं, क्रोध-मान-माया-लोभ, रागद्वेष, वे क्या-क्या काम करते हैं? क्या भूमिका अदा करते हैं?
प्रश्नकर्ता : हैरान-परेशान कर देते हैं। गुस्सा आ जाता है। बाद में जागृति आती है कि हमने यह गलत किया है। बाद में क्या उसके प्रतिक्रमण करना ज़रूरी है?
दादाश्री : अपने गुस्से से सामनेवाले को दुःख हुआ हो या सामनेवाले को कुछ भी नुकसान हुआ हो, तब आपको चंदूभाई से कहना चाहिए कि, 'हे चंदूभाई, प्रतिक्रमण कर लो, माफ़ी माँग लो।' सामनेवाला व्यक्ति यदि सरल नहीं हो, और उसके हम पैर छूने जाएँ तब वह ऊपर से हमें सिर पर मारेगा कि देखो अब ठिकाने आया!
बड़े ठिकाने लानेवाले आए ये लोग! ऐसे लोगों के साथ झंझट कम कर देना चाहिए, परंतु उसका गुनाह तो माफ़ कर ही देना चाहिए। वे कितने भी अच्छे भाव से या खराब भाव से आपके पास आया हो, परंतु उसके साथ कैसा व्यवहार रखना, वह आपको देखना है। सामनेवाले की प्रकृति टेढ़ी हो तो उस टेढ़ी प्रकृति के साथ भेजाफोड़ी नहीं करनी चाहिए। प्रकृति से ही यदि वह चोर हो, आप दस वर्ष से उसे चोरी करते हुए देख रहे हों और वह आकर आपके पैर छू जाए तो आपको क्या उस पर विश्वास रखना चाहिए? विश्वास नहीं रख सकते। चोरी करे, उसे हम माफ़ कर दें कि 'तू जा, अब तू छूट गया, तेरे लिए मेरे मन में कुछ नहीं रहेगा।' परंतु उस पर विश्वास नहीं रखना चाहिए और उसका फिर संग भी नहीं रखना चाहिए। फिर भी यदि संग रखा और फिर विश्वास नहीं रखो तो