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आप्तवाणी-६
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के कारण नहीं खड़ा है। संसार का 'रूट कॉज़' ये क्रोध-मान-मायालोभ हैं।
प्रश्नकर्ता : क्रोध-मान-माया-लोभ आएँ, उस समय स्वयं जागृत अवस्था में रहे, तो फिर उसका बँध नहीं पड़ता न?
दादाश्री : जागृति रहे किस तरह? वह खुद ही अंधा है, उसने दूसरों को अंधा बनाया है। जब तक उजाला नहीं होता, समकित नहीं होता, तब तक जागृत नहीं कहलाएगा न! समकित हो जाने के बाद काम होता है। जब तक समकित नहीं होता तब तक संयम भी नहीं है। वीतरागों का कहा हुआ संयम कहीं भी नहीं है, यह तो लौकिक संयम है।
प्रश्नकर्ता : वह स-राग चारित्र है?
दादाश्री : स-राग चारित्र तो बहुत ऊँची वस्तु है, ज्ञानी स-राग चारित्र में हैं। और जब ज्ञानी संपूर्ण वीतराग हो जाते हैं, फिर वीतराग चारित्र आता है।
संयम किसे कहते है? विषयों के संयम को त्याग कहा है। भगवान ने सिर्फ कषाय के संयम को संयम कहा है। कषायों के संयम से ही यह छूटता है, असंयम से तो बंधन है। विषय तो समकित होने के बाद भी रहते हैं, परंतु वे विषय गुणस्थानक में आगे नहीं बढ़ने देते, फिर भी उसमें हर्ज नहीं है, ऐसा कहा है। क्योंकि उससे कहीं समकित चला नहीं जाता।
___'देखत भूली' टले तो... 'अक्रम विज्ञान' क्या कहता है?
फर्स्ट क्लास हाफूज़ आम देखने में हर्ज नहीं, तुझे सुगंध आई उसमें भी हर्ज नहीं, परंतु भोगने की बात मत करना। ज्ञानी भी आम को देखते हैं, सूंघते हैं। यानी ये विषय जो भोगे जाते हैं न, वे 'व्यवस्थित' के हिसाब से भोगे जाते हैं, वह तो 'व्यवस्थित' है ही! परंतु बिना काम के बाहर आकर्षण हो उसका क्या अर्थ? जो आम घर पर आनेवाले नहीं हैं, उन पर भी आकर्षण रहता है। और सब जगह आकर्षण हो, वह जोखिम है सारा। उससे कर्म बँधते हैं!