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आप्तवाणी-६
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मज़ाक से टूटता है वचनबल प्रश्नकर्ता : वचनबल किस तरह उत्पन्न होता है?
दादाश्री : एक भी शब्द का उपयोग मज़ाक उड़ाने के लिए नहीं किया हो, एक भी शब्द का गलत स्वार्थ या किसी से धोखे से छीन लेने के लिए उपयोग नहीं किया हो, शब्द का दुरुपयोग नहीं किया हो, खुद का मान बढ़े उसके लिए वाणी नहीं बोली हो, तब वचनबल उत्पन्न होता
प्रश्नकर्ता : खुद के मान के लिए और स्वार्थ के लिए ठीक है, परंतु मज़ाक उड़ाने में क्या हर्ज है?
दादाश्री : मज़ाक उड़ाना तो बहुत गलत है। इसके बजाय तो मान दो, वह अच्छा! मज़ाक तो, 'भगवान की उड़ाई' ऐसा कहा जाएगा! आपको ऐसा लगता है कि यह गधे जैसा आदमी है, लेकिन वह तो भगवान है! 'आफ्टर ऑल' वह क्या है, उसकी जाँच कर लो। आफ्टर ऑल तो भगवान ही है न?
मुझे मज़ाक उड़ाने की बहुत आदत थी। मज़ाक यानी कैसी कि बहुत नुकसानदेह नहीं, लेकिन सामनेवाले के मन पर असर तो होता था न? अपनी बुद्धि अधिक विकसित हो, उसका दुरुपयोग किसमें हुआ? कम बुद्धिवाले की मज़ाक उड़ाई उसमें! यह जोखिम जब से मुझे समझ में आया, तब से मज़ाक उड़ाना बंद हो गया। मज़ाक तो कभी उड़ाई जाती होगी? मज़ाक उड़ाना तो भयंकर जोखिम है, गुनाह है! मज़ाक तो किसी की भी नहीं उड़ानी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : लेकिन अधिक बुद्धिवाले की मज़ाक उड़ाने में क्या हर्ज है?
दादाश्री : नहीं, परंतु कम बुद्धिवाला स्वाभाविक रूप से मज़ाक उड़ाता ही नहीं न?
कोई भगवान ऐसे-ऐसे चल रहे हों तो हमारे यहाँ लोग हँसते हैं।