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आप्तवाणी-६
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कुछ अलग नियम हैं? नियम वही का वही है। यह तो इसका मोह है। मरते समय घर के लोग कहेंगे कि 'चाचा, अब आप मंत्र बोलो', फिर भी वह नहीं बोलता। ऊपर से चाचा क्या कहता है, 'यह बेअक्ल है न?' लो, यह अक्ल का बोरा! बाज़ार में बेचने जाएँ तो चार आने भी नहीं दे कोई! चाचा का जीव बेटी का विवाह करने में अटका होता है, वह मन में सोचता रहता है कि यह रह गई है।
जो निष्पक्षपाती हो चुके हों, उन्हें मृत्यु का पता कैसे नहीं चलेगा? मृत्यु का उसे भय लगता है! दूसरे गाँव जाने का, यात्रा में जाने का उसे भय नहीं लगता! क्योंकि उसके मन में ऐसा होता है कि मैं वापस आऊँगा, 'अरे वापस आया या न भी आया! उसका तो क्या ठिकाना?'
हम तो स्टीमर के कान में फूंक मारते हैं कि 'तुझे जब डूबना हो तब डूबना, हमारी इच्छा नहीं है।' स्टीमर तो फायदे के लिए पानी में उतारा, वह पानी है, तो एक दिन डूब भी सकता है! ऐसे ही इस देह से कहें, "तुझे छूटना हो तब छूट जाना, मेरी इच्छा नहीं है!' क्योंकि नियम इतना अच्छा है कि किसी को भी छोड़नेवाला नहीं है, यहाँ पर कहीं किसी को दया आए ऐसा नहीं है। इसलिए बेकार ही बिना काम के दया किसलिए माँगते हो कि 'हे भगवान, बचाना!' भगवान तो किस तरह बचाएँगे? भगवान खुद ही नहीं बचे थे न! जिन्होंने यहाँ जन्म लिया था, वे सभी भगवान बचे नहीं थे न! कृष्ण भगवान पैर चढ़ाकर ऐसे सो रहे थे। तो उस शिकारी ने देखा और उसे ऐसा लगा कि यह हिरण-विरण वगैरह है, और तीर मारा! मृत्यु किसी को भी छोड़ती नहीं, क्योंकि यह अपना स्वरूप नहीं है। अपने स्वरूप में कोई नाम भी नहीं लेगा। यदि 'आप' शद्धात्मा हो, तो कोई नाम लेनेवाला नहीं है, तो 'आप' परमात्मा ही हो! परंतु यहाँ किसी के ससुर बनना हो तब मुश्किल!
प्रश्नकर्ता : देह जब छूटना हो तब छूटे, हमारी इच्छा नहीं है, ऐसा कहने का क्या आशय है?
दादाश्री : वह तो देह के प्रति तिरस्कार उत्पन्न नहीं हो इसलिए कहते हैं कि हमारी इच्छा नहीं है!