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आप्तवाणी-६
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कोई उसके पास कपट करे ही नहीं। मेरे पास कोई कपट करता ही नहीं। अपने मन में कपट हो तभी सामनेवाला व्यक्ति कपट करता है। अपने मन में कपट नहीं हो तो कोई कपट करता ही नहीं! अपना ही फोटो है यह सारा!
प्रश्नकर्ता : अपना लेन-देन होगा, इसलिए सामनेवाला कपट करता है?
दादाश्री : हिसाब को तो हम लेट गो करते हैं। हिसाब का निवारण हो सके, ऐसा नहीं है। हिसाब तो, जो मुझे मिला है, उसका भी निवारण नहीं हो सकता।
आपसे कुछ भी बदला जा सके, ऐसा नहीं है। यह शोर मचाने का अर्थ ही क्या है फिर? उसका कपट तो वैसे का वैसा ही रहता है, बल्कि वह उसे बढ़ाता जाता है। आपने शोर मचाया तो वह मन ही मन कहेगा कि 'इनमें कुछ बरकत नहीं है और बेकार ही शोर मचा रहे हैं!' ऐसे वह खुद की भूल बढ़ाता ही जाता है और आपको पी जाता है!
प्रश्नकर्ता : उसका रास्ता क्या?
दादाश्री : उस पर अपना ऐसा प्रभाव पड़े कि वह कपट ही नहीं करे। हमें ये दूसरे सब तरीके अपनाने की ज़रूरत नहीं है। गुस्सा करते हो, इसके बदले मौन रहो न। गुस्सा, वह हथियार नहीं है।
प्रश्नकर्ता : कपट से कोई व्यक्ति माल की चोरी करता हो, तो हमें देखते रहना है?
दादाश्री : उसके लिए गुस्सा, वह हथियार नहीं है। अन्य किसी हथियार का उपयोग करो और बैठाकर उसे समझाओ, विचारणा करने को कहो, तो सब ठिकाने पर आ जाएगा।
प्रश्नकर्ता : डॉक्टर ने कहा कि, 'आपको ब्लड प्रेशर है', तो उसे कुछ चीजें नहीं खानी चाहिए, फिर भी वह नहीं माने और खाए, तो मुझे डॉक्टर के पास दौड़ना ही पड़ेगा न?