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आप्तवाणी-६
अरे, क्या मज़ाक उड़ा रहा है? भीतर भगवान समझ गए सबकुछ ! भगवान की ऐसी दशा हुई, उस पर तू मज़ाक उड़ा रहा है, ऐसा? तेरी दशा भी वैसी ही होगी, ऐसा नियम ही है ! इसलिए इस दशा का ध्यान रखो।
प्रश्नकर्ता : मुझसे तो बड़े लोगों का मज़ाक हो जाता है ।
दादाश्री : ऐसा है कि आपने तो अभी यह बात समझ ली कि मज़ाक उड़ाना गुनाह है, मैं तो छोटी उम्र से ही जानता था, फिर भी आठदस वर्षों तक मज़ाक होती रही । आपकी आदत तो बहुत जल्दी ही चली जाएगी।
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फिर भी ऐसी मज़ाक करने में हर्ज नहीं है कि जिससे किसी को दुःख नहीं हो और सभी को आनंद हो । उसे निर्दोष मज़ाक कहा है। वह तो हम अभी भी करते हैं, क्योंकि मूल (स्वभाव) जाता नहीं न? परंतु उसमें निर्दोषता ही होती है !
ज्ञानी की Flexibility
प्रश्नकर्ता : खिलौने जैसे छोटे बच्चों के साथ आपको किस तरह रास आता है?
दादाश्री : हम 'काउन्टर पुलियों' का सेट रखते हैं। इतने सारे सेट रखते हैं कि कोई व्यक्ति यहाँ पर आया कि उसी तरह से हमारी काउन्टर पुली सेट कर देते हैं। इसलिए इतना सा बच्चा आए और मुझे 'जय जय' ( नमस्कार) करे तो मुझे उसके साथ बातचीत करनी पड़ती है । हमसे बालक कभी भी भयभीत नहीं होता ।
प्रश्नकर्ता : आपकी समकक्षा का आए, तब क्या करते हैं?
दादाश्री : हमारी समकक्षा है ही नहीं । यह बेजोड़ पद माना जाता है। शास्त्रकारों ने ही इसे बेजोड़ कहा है।
हमें ट्रेन में कोई मिले और हम 'ज्ञानी' हैं ऐसा वह नहीं जानता हो, फिर भी हम पुली लगा देते हैं, 'हम पेसेन्जर हैं', ऐसी ।