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[२१] चीकणी 'फाइलों में समभाव प्रश्नकर्ता : संसार में सब से बड़ा कार्य, इन फाइलों का 'समभाव से निकाल' करना, वही है न?
दादाश्री : हाँ, इन ‘फाइलों' की ही झंझट है। इन 'फाइलों' के कारण ही आप फंसे हुए हो। इन 'फाइलों' ने ही आपको रोका है, दूसरा कोई रोकनेवाला नहीं है। बाकी सभी जगह आप वीतराग ही हो।
प्रश्नकर्ता : भाव बहुत होता है फिर भी समभाव से निकाल नहीं हो पाए, तो क्या करें?
दादाश्री : हाँ, वैसा होता है, परंतु उसकी जोखिमदारी अपनी नहीं है। हमें ऐसा नक्की रखना चाहिए कि 'समभाव से निकाल' नहीं हो सके, फिर भी हमें अपना ‘समभाव से निकाल' करने का भाव बदलना नहीं है। मन में ऐसा नहीं होना चाहिए कि 'अरे, अब निकाल नहीं करना है।' "मुझे 'समभाव से निकाल' करना ही है," ऐसा भाव हमें छोड़ना नहीं है। 'समभाव से निकाल' नहीं हो, वह 'व्यवस्थित' के ताबे की बात है।
प्रश्नकर्ता : अगर आज निकाल नहीं हुआ तो, कल-परसों तो होगा ही न?
दादाश्री : अस्सी प्रतिशत निकाल तो अपने आप ही हो जाता है। यह तो दस-पंद्रह प्रतिशत ही नहीं हो पाता। वह भी अगर बहुत चीकणी (गाढ़) हो, उसी का। उसमें भी हम गुनहगार नहीं हैं, 'व्यवस्थित' गुनहगार है। हमने तो नक्की ही किया है कि 'समभाव से निकाल करना ही है। अपने सभी प्रयत्न समभाव से निकाल करने के होने चाहिए।