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आप्तवाणी- -६
दखलंदाज़ी की कि राग-द्वेष खड़ा हुआ । वह घर में से चोरी करके ले गया हो, फिर भी यदि आप उसे चोर मानोगे, तो आपका राग- -द्वेष उत्पन्न हो जाएगा। क्योंकि 'यह चोर है' ऐसा आप मानते हो और वह तो लौकिक ज्ञान है जबकि अलौकिक ज्ञान वैसा नहीं है । अलौकिक में तो एक ही शब्द कहते हैं कि 'वह तेरे ही कर्म का उदय है। उसके कर्म का उदय और तेरे कर्म का उदय, वे दोनों एक हुए, इसलिए वह ले गया । उसमें तू वापस किसलिए अभिप्राय डालता है कि यह चोर है ? '
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हम तो आपसे कहते हैं न कि, सावधानीपूर्वक चलो, पागल कुत्ता अंदर घुस जाएगा, ऐसा लगे कि तुरंत ही ' अपना' दरवाज़ा बंद कर दो। परंतु उस पर यदि आप ऐसा कहो कि 'यह पागल ही है' तो वह अभिप्राय डाला कहा जाएगा ।
प्रश्नकर्ता : अरे दादा, कुत्ता घुस जाएगा, तब दरवाज़ा बंद करने के बदले मैं तो सामने ज़ोर लगाऊँ और दरवाज़ा बंद करते हुए दरवाज़े का भी फज़ीता करूँ और कुत्ते का भी फज़ीता करूँ!
दादाश्री : यह सब लौकिक ज्ञान है । भगवान का अलौकिक ज्ञान तो क्या कहता है कि किसी पर आरोप ही मत लगाना, किसी के लिए अभिप्राय मत डालना, किसी के लिए कोई भाव ही मत करना। 'जगत् निर्दोष ही है !' ऐसा जानोगे तो जाओगे। जगत् छूट के तमाम जीव निर्दोष ही हैं और मैं अकेला ही दोषित हूँ, मेरे ही दोषों के कारण मैं बंधा हुआ हूँ, ऐसी दृष्टि हो जाएगी, तब छूटा जा सकेगा।
भगवान ने जगत् निर्दोष देखा था, मुझे भी कोई दोषित नहीं दिखता है। फूलों का हार चढ़ाए तो भी कोई दोषित नहीं है और गालियाँ दे तो भी कोई दोषित नहीं है, और जगत् निर्दोष ही है। यह तो मायावी दृष्टि के कारण सब दोषित दिखते हैं। इसमें सिर्फ दृष्टि का ही दोष है।
दानेश्वरी व्यक्ति दान दे, तो उसे वह कहता है, 'ये दान दे रहे हैं, ये कितने अच्छे लोग हैं?' जब कि भगवान कहते हैं कि तू क्यों खुश हो रहा है? वह अपने कर्म का उदय भोग रहा है। दान लेनेवाले भी अपने