________________
१४८
आप्तवाणी-६
आसपास के वातावरण से पता चल गया। फिर दूसरे दिन जब वह आए तब देखते ही उस पर शंका करो, तो वह गुनाह है।
प्रश्नकर्ता : और यदि ऐसा अभिप्राय रहे कि यह झूठा है, तो वह गुनाह है?
दादाश्री : शंका करे, वहीं से गुनाह उत्पन्न होता है। भगवान ने क्या कहा है कि 'कल उसके कर्म के उदय से वह चोर था और आज शायद नहीं भी हो।' यह तो सब उदय के अनुसार है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन फिर हमें कैसा बर्ताव करना चाहिए? यदि हम अभिप्राय नहीं रखेंगे तो उसे लत लग जाएगी कि 'यह तो ठीक है, ये तो कुछ बोलेंगे ही नहीं। इसलिए रोज़-रोज़ आक्षेप लगाते जाओ।'
दादाश्री : नहीं, हमें तो, उसके लिए अभिप्राय दिए बिना सावधानीपूर्वक चलना है। आप पैसे जेब में रखते हों और आपको पता चले कि यह व्यक्ति जेब में से निकालकर ले गया है, तो किसी के प्रति अभिप्राय नहीं बंधे इसलिए आपको पैसे दूसरी जगह पर रख देने चाहिए।
प्रश्नकर्ता : ऐसा नहीं, यह तो एक व्यक्ति जिसका खुद का कोई दूसरा लेनदार हो, उसे ऐसा कहेगा, 'मैंने चंदभाई से कहा है, उन्होंने आपको पैसे भेज दिए हैं।' तब होता है कि मैं तुझे मिला नहीं, तू मुझे मिला नहीं और इतना झूठ बोल रहा है? मेरे साथ ऐसा हो, वहाँ पर अब किस तरह से व्यवहार करना चाहिए?
दादाश्री : हाँ, ऐसा सब झूठ भी बोलता है, परंतु वह बोला किसलिए? क्यों दूसरे का नाम नहीं दिया और चंदूभाई का ही देता है? इसलिए कहीं न कहीं आप गुनहगार हो। आपके कर्म का उदय ही आपका गुनाह है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन यहाँ पर मेरा व्यवहार कैसा होना चाहिए?
दादाश्री : राग-द्वेष से यह संसार खड़ा होता है। इसका मूल ही राग-द्वेष है। राग-द्वेष क्यों होते हैं? तब कहें कि किसी के बीच में