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आप्तवाणी-६
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एक अच्छे इज़्ज़तदार घर का लड़का था, लेकिन उसे चोरी की बुरी आदत पड़ चुकी थी। उसने चोरी करना बंद कर दिया। फिर मेरे पास आकर उसने कहा, 'दादा, अभी तक भी लोग मुझे चोर कहते हैं।' तब मैंने उसे कहा, 'तू दस वर्ष से चोरी कर रहा था, फिर भी लोगों ने तुझे पहचाना नहीं। तब तक लोग तुझे साहूकार कहते थे। अब तू चोर नहीं है। साहूकार हो जाएगा, फिर भी दस वर्षों तक चोर का पुराना प्रतिस्पंदन आता रहेगा। इसलिए तू दस वर्षों तक सहन करना। परंतु अब तू फिर से चोरी मत करने लगना। क्योंकि मन में ऐसा लगेगा कि, 'वैसे भी लोग मुझे चोर कहते ही हैं, इसलिए चोरी ही करो न!' ऐसा मत करना।
अंधेर चले ऐसा नहीं है। हमें ज्ञान हुआ उससे पहले के हमारे प्रतिस्पंदन भी हमारे सगे-संबंधियों को अभी तक महसूस होते हैं!
प्रश्नकर्ता : तो वे प्रतिस्पंदन जल्दी से कैसे जाएँगे?
दादाश्री : धीरे-धीरे जाने ही लगे हैं। यहाँ से गाड़ी निकली, उसे लोग क्या कहते हैं? कि गाड़ी मुंबई गई।
प्रश्नकर्ता : एक 'पेसेन्जर' और एक 'राजधानी एक्सप्रेस' जाती है। हमें तो 'राजधानी एक्सप्रेस' चाहिए।
दादाश्री : वह तो जल्दबाज़ीवाला स्वभाव है। आप खिचड़ी कच्ची रखोगे तो सभी को कच्चा खाना पड़ेगा। इसलिए ऐसा भोजन हो वहाँ हमें 'धीरजलाल' को (!) बुलाना चाहिए (धीरज रखना)!
परिणाम परसत्ता में प्रश्नकर्ता : गलत करनेवाले को सभी खयाल रहता है, फिर भी गलत क्यों करता है?
दादाश्री : गलत होता है, वह तो पर-परिणाम है। हम यह 'बॉल' यहाँ से डालें, फिर हम उसे कहें कि अब तू यहाँ से दूर मत जाना, जहाँ पर डाला वहीं पर पड़ी रहना। ऐसा होता है क्या? नहीं होता। डालने के बाद 'बॉल' पर-परिणाम में जाते हैं। इसलिए जिस तरह से किए होंगे, यानी