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आप्तवाणी-६
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प्रश्नकर्ता : 'रियल' में ही अच्छा लगता है, दादा! लेकिन दोनों में ही रहना पड़ता है न? हम निश्चय से समझते हैं कि सब निर्दोष ही हैं, लेकिन जब व्यवहार में कई बार दूसरी तरफ़ भी देखना पड़ता है न?
दादाश्री : नहीं, व्यवहार ऐसा नहीं कहता कि सामनेवाले के दोष देखने पड़ेंगे। व्यवहार में तो 'हम' भी रहते ही हैं न? फिर भी हमें जगत् निर्दोष ही दिखता है।
जगत् में दोषित कोई है ही नहीं। दोषित दिखते हैं, वह अपनी ही भूल है। फिर भी इतने सारे कोर्ट, वकील, सरकार, सब दोषित ही कहते हैं न?
प्रश्नकर्ता : हमें कैसा मानना चाहिए? व्यवहार से तो दोषित हैं ही
दादाश्री : व्यवहार से कोई दोषित नहीं है।
शुद्ध व्यवहार से कोई दोषित है ही नहीं। निश्चय से सभी शुद्धात्मा हो गए, इसलिए उनके दोष हैं ही नहीं न?
और दोषित होते तो महावीर को कोई तो दोषित दिखता, परंतु भगवान को कोई दोषित नहीं दिखा। इतने बड़े-बड़े खटमल काटते थे, लेकिन वे दोषित नहीं दिखे।
दोषदर्शन, उपयोग से प्रश्नकर्ता : याद करके पिछले दोष देखे जा सकते हैं?
दादाश्री : पिछले दोष, वास्तव में तो उपयोग से ही दिखते हैं। याद करने से नहीं दिखते। याद करने के लिए तो सिर खुजलाना पड़ता है। आवरण आ जाते हैं, तब याद करना पड़ता है न? इन नगीनभाई के साथ खिटपिट हो गई हो, तब यदि नगीनभाई का प्रतिक्रमण करें तो नगीनभाई हाज़िर हो ही जाएँगे। सिर्फ वैसा उपयोग ही रखना है। अपने मार्ग में याद करने का तो कुछ है ही नहीं। याद करना, वह तो 'मेमोरी' के अधीन है।