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आप्तवाणी-६
अपने रास्ते में कोई आड़े आए, तब उसे समझा-पटाकर काम निकाल लेना है। इन्हें तो आड़े आते देर नहीं लगती। उनमें से किसी का आपको धक्का लग जाए, तो बदले में शिकायत करने मत जाना, परंतु उसे अटा-पटाकर काम निकाल लेने जैसा है।
फ़र्ज पूरे करो, लेकिन सावधानी से प्रश्नकर्ता : सर्विस के कारण किसी के साथ कषाय हो जाएँ या करने ही पड़ें, तो उससे आत्मा पर कुछ असर होता है?
दादाश्री : नहीं, लेकिन फिर पछतावा होता है न?
प्रश्नकर्ता : फ़र्ज़ पूरे करने में कषाय करने पड़ें तो क्या करना चाहिए?
दादाश्री : आपकी बात ठीक है। ऐसा संपूर्ण संयम नहीं होता कि फ़र्ज़ पूरा करते समय भी संयम रह सके, फिर भी किसी को बहुत दुःख हो जाए तो मन में ऐसा होना चाहिए कि 'अरे, अपने हाथ से ऐसा नहीं हो तो अच्छा।'
प्रश्नकर्ता : लेकिन फ़र्ज़ तो अदा करना ही चाहिए न? ये पुलिसवाले क्या करते हैं?
दादाश्री : फ़र्ज़ तो अदा करना ही पड़ेगा, उसके बिना चलेगा नहीं। वह तो, दो-तीन चोर घूम रहे हों तो पुलिसवाले को पकड़ने ही पड़ेंगे, उसके बिना चलेगा ही नहीं। वह व्यवहार है। परंतु अब उसमें दो भाव रहते हैं, एक तो फ़र्ज़ पूरा करते समय क्रूरता नहीं रहनी चाहिए। पहले जो क्रूर भाव रहता था, वह अब नहीं रहना चाहिए। अपना आत्मा (प्रतिष्ठित आत्मा) बिगड़े नहीं, वैसे रखना चाहिए। वर्ना फ़र्ज़ तो अदा करना ही पड़ेगा। गुरखा हो उसे भी फ़र्ज़ अदा करना पड़ता है, और दूसरी तरफ मन में ऐसा पश्चाताप रहना चाहिए कि ऐसा काम अपने हिस्से में नहीं आए तो अच्छा!