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आप्तवाणी-६
भय मत रखना। यह पूरा कमरा साँपों से भरा हुआ हो, फिर भी यदि अहिंसक पुरुष अंदर प्रवेश करे तो साँप एक-दूसरे पर चढ़ जाएँगे, परंतु उन्हें छूएँगे नहीं!
इसलिए सावधानीपूर्वक चलना। यह जगत् बहुत ही अलग प्रकार का है। बिल्कुल न्याय स्वरूप है! जगत् का सार निकालकर अनुभव की स्टेज पर लेंगे, तभी काम होगा न? 'इसका क्या परिणाम आएगा?' उसकी 'रिसर्च' करनी पड़ेगी न?
प्रश्नकर्ता : मार खाने के बाद 'रिसर्च' करता है न?
दादाश्री : हाँ, असली 'रिसर्च' तो मार खाने के बाद ही होती है। मारने के बाद 'रिसर्च' नहीं हो पाती।
जगत् निर्दोष-निश्चय से, व्यवहार से दादाश्री : लोगों को, खुद के दोष नहीं दिखते होंगे न? प्रश्नकर्ता : नहीं दिखते।
दादाश्री : क्यों? उसका क्या कारण होगा? इतने सारे बुद्धिशाली लोग हैं न?
प्रश्नकर्ता : दूसरों के सभी दोष दिखते हैं।
दादाश्री : वे भी सच्चे दोष नहीं दिखते। खुद की बुद्धि से नापनापकर सामनेवाले के दोष निकालता है। इस जगत् में हमें तो किसी का भी दोष नहीं दिखता।
प्रश्नकर्ता : दादा, पूरा जगत् निर्दोष हैं। वह 'रियल' भाव से ठीक है, परंतु 'रिलेटिव' भाव से तो उस वस्तु में दोष रहेगा ही न?
दादाश्री : हाँ, परंतु हम अब 'रिलेटिव' में रहना ही नहीं चाहते न? हमें तो 'रियल' भाव में ही रहना है। 'रिलेटिव' भाव अर्थात् संसारभाव। आपको 'रिलेटिव' में अच्छा लगता है या 'रियल' में?