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आप्तवाणी-६
इसमें तो कैसा है कि घर बैठे पैसे लौटाने आए ऐसा मार्ग है ! पाँचसात बार उगाही के लिए चक्कर काटने पर भी वह नहीं मिलें, और अंत में मिले तब वह कहता है कि एक महीने बाद आना । उस घड़ी आपके परिणाम नहीं बदलें, तो घर बैठे पैसा आएगा !
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आपके परिणाम बदल जाते हैं न? 'यह बेअक्ल है, नालायक है, चक्कर बेकार गया।' वगैरह। यानी आपके परिणाम बदले हुए होते हैं । फिर से आप जाओ तब वह आपको गालियाँ देता है । मेरे परिणाम नहीं बदलते, फिर क्या चिंता? परिणाम बदल जाएँ, तो वह बिगड़नेवाला नहीं होगा, फिर भी बिगड़ेगा।
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बाघ हिंसक है या बिलीफ़ ?
प्रश्नकर्ता : इसका अर्थ यही है कि हम बिगाड़ते हैं?
दादाश्री : अपना सबकुछ हम ही बिगाड़ते हैं । हमें जितनी अड़चनें आती हैं, वे सब हमारी ही बिगाड़ी हुई हैं । कोई टेढ़ा हो तो उसे सुधारने का रास्ता क्या है? तब कहे कि 'सामनेवाला चाहे कितना भी दुःख दे रहा हो, फिर भी उसके लिए उल्टा विचार तक नहीं आए', वह उसे सुधारने का रास्ता! इससे अपना भी सुधरता है और उसका भी सुधरता है ! जगत् के लोगों को उल्टा विचार आए बगैर रहता नहीं । और हमने तो 'समभाव से निकाल' करने को कहा है, 'समभाव से निकाल' यानी उसके लिए कोई भी विचार नहीं करना है।
यदि बाघ के प्रतिक्रमण करें तो बाघ भी अपने कहे अनुसार काम करेगा। बाघ में और मनुष्य में कोई फर्क नहीं है। फर्क आपके स्पंदन का है। उनका असर होता है । 'बाघ हिंसक है' जब तक आपके मन में ऐसा ध्यान रहे, तब तक वह हिंसक ही रहता है और बाघ 'शुद्धात्मा है' ऐसा ध्यान रहे तो, वह शुद्धात्मा ही है । सभीकुछ हो सके, ऐसा है।
इस बॉल को फेंकने के बाद अपने आप स्वभाव से ही परिणाम बंद हो जाएँगे। वह सहज स्वभाव है । वहाँ पर पूरे जगत् की मेहनत बेकार