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आप्तवाणी-६
फ़ॉरेन के लोगों की चंचलता ब्रेड और मक्खन में होती है। और अपने लोगों की चंचलता सात पीढ़ी की चिंता में होती है!
(प्रतिष्ठित) आत्मा सहज हो जाएगा, फिर देह सहज होगी। उसके बाद फिर हमारे जैसा मुक्त हास्य उत्पन्न होगा।
अप्रयत्न दशा प्रयास मात्र से सबकुछ उल्टा होता है। अप्रयास होना चाहिए। सहज होना चाहिए। प्रयास हुआ इसलिए सहज नहीं रहा। सहजता चली जाती है।
सहज भाव में बुद्धि का उपयोग नहीं होता। सुबह बिस्तर में से उठे तब दातुन करो, चाय पीओ, नाश्ता करो, ऐसा सब सहजभाव से होता ही रहता है। उसमें मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार का उपयोग नहीं करना पड़ता। जिनमें इन सबका उपयोग होता है, उसे असहज कहते हैं।
आपको कोई वस्तु चाहिए और सामने कोई व्यक्ति मिले और कहे कि, 'लो, यह वस्तु', तो वह सहजभाव से मिला हुआ कहा जाएगा।
सहज अर्थात् अप्रयत्न दशा प्रश्नकर्ता : मोक्ष भी सहजरूप से आता हो तो मनुष्य को उसके लिए प्रयत्न करने की क्या ज़रूरत है?
दादाश्री : प्रयत्न कोई करता ही नहीं है। यह तो सिर्फ अहंकार करता है कि मैंने प्रयत्न किया!
प्रश्नकर्ता : यह मैं यहाँ पर आया हूँ, वह प्रयत्न करके ही आया हूँ न?
दादाश्री : वह तो आप ऐसा मानते हो कि मैं यह प्रयत्न कर रहा हूँ, आप सहज रूप से ही यहाँ पर आए हो। मैं वह जानता हूँ और आप वह नहीं जानते हो। आपका इगोइज़म आपको दिखाता है कि 'मैं था तो हुआ।' वास्तव में सभी क्रियाएँ स्वाभाविक रूप से हो रही होती है।