________________
आप्तवाणी-६
१४१
'आपको' कुछ भी नहीं करना है। आपको तो निश्चय करना है कि 'मुझे दादाजी की आज्ञा का पालन करना है।' और पालन नहीं हो सके तो भी उसकी चिंता नहीं करनी है। आपको दृढ़ निश्चय करना है कि 'मेरी सास डाँटती है' तो वे दिखें उससे पहले ही मन में तय करना कि "मुझे दादा की आज्ञा पालनी है और इनके साथ 'समभाव से निकाल' करना ही है।" फिर यदि समभाव से निकाल नहीं हो, तो आप जोखिमदार नहीं। आप आज्ञा पालन करने के अधिकारी हो, आप अपने निश्चय के अधिकारी हो, उसके परिणाम के अधिकारी आप नहीं हो! आपका निश्चय होना चाहिए कि मुझे आज्ञा पालन करना ही है, फिर नहीं किया जा सके तो उसका खेद आपको नहीं करना है। परंतु मैं आपको दिखाऊँ उसके अनुसार प्रतिक्रमण करना। अतिक्रमण किया, इसलिए प्रतिक्रमण करो। इतना सरल, सीधा और सुगम मार्ग है, इसे समझ लेना है!