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आप्तवाणी-६
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रहता। मशीन अंदर हित दिखाए तो हित करती है, अहित दिखा रही हो तो अहित करती है। किसी का खेत देखकर उसमें घुस जाती है।
प्रश्नकर्ता : उसमें वे कोई भाव नहीं करते न?
दादाश्री : उन्हें तो कुछ 'निकाल' करने का होता ही नहीं न ! वह तो उनका स्वभाव ही ऐसा है, सहज स्वभाव! उनका बच्चा चारछह महीने का होने के बाद फिर चला जाता है, तो उन्हें कोई तकलीफ नहीं। उनकी देखभाल चार-छह महीनों तक ही रखते हैं। और अपने लोग तो...
प्रश्नकर्ता : मरने तक रखते हैं।
दादाश्री : नहीं, सात पीढ़ियों तक रखते हैं! गाय, वह बच्चे की देखभाल छह महीनों तक रखती है। ये फ़ॉरेन के लोग अठारह वर्ष का हो जाए तब तक रखते हैं, और अपने हिन्दुस्तान के लोग तो सात पीढ़ियों तक रखते हैं।
अर्थात् सहज वस्तु ऐसी है कि उसमें बिल्कुल भी जागृति नहीं रहती। भीतर से जो उदय में आया, उस उदय के अनुसार भटकना, वह सहज कहलाता है। यह लट्ट घूमता है, वह ऊँचा होता है, नीचा होता है, कितनी बार ऐसे गिरने लगता है, एक इंच कूदता भी है, तब हमें ऐसा लगता है कि 'अरे, गिरा, गिरा।' तब तो मुआ वापस घूमने लगता है, वह सहज कहलाता है!
'असहज' की पहचान सहज प्रकृति अर्थात् जैसा लपेटा हुआ हो उसी तरह खुलकर घूमता है, दूसरा कोई झंझट नहीं।
___ ज्ञानदशा की सहजता में तो, आत्मा यदि इसका ज्ञाता-दृष्टा रहे तभी वह सहज हो सकेगा। और उसमें हस्तक्षेप किया कि वापस बिगड़ जाएगा। 'ऐसा हो जाए तो अच्छा, ऐसा नहीं हो तो अच्छा।' ऐसे दख़ल करने जाए कि असहज हो जाएगा।