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आप्तवाणी-६
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ही नहीं सकते, पहचान ही नहीं सकते न! इसलिए 'हम' स्वीकार नहीं करते। 'हमें' छूता ही नहीं, हम वीतराग रहते हैं ! हमें उस पर राग-द्वेष नहीं होते। इसलिए फिर एक अवतारी या दो अवतारी होकर सब खत्म हो जाएगा!
वीतराग इतना ही कहना चाहते हैं कि कर्म बाधक नहीं हैं। तेरी अज्ञानता बाधक है! देह है तब तक कर्म तो होते ही रहेंगे, परंतु अज्ञानता जाएगी तो कर्म बँधने बंद हो जाएँगे!