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आप्तवाणी-६
१२५ गई! जगत् परिणाम को बंद करने जाता है और कॉज़ेज़ चलते ही रहते है! इसलिए फिर बड़ में से बीज और बीज में से बड़ बनते ही रहते हैं। पत्तियाँ काटने से दिन नहीं बदलेंगे। उसे तो, मूल सहित निकाल देंगे, तब काम होगा। हम तो उसके मुख्य जड़ में ज़रा दवाई डाल देते हैं, तो पूरा पेड़ सूख जाता है।
यह संसारवृक्ष कहलाता है। इस ओर कड़वे फल आते हैं, इस ओर मीठे फल आते हैं। वे वापस खुद को ही खाने पड़ते हैं।
एक बार आम पर बंदर आएँ और आम तोड़ दें, तो मालिक के परिणाम कहाँ तक बिगड़ते हैं? परिणाम इतने अधिक बिगाड़ते हैं कि आगेपीछे का सोचे बिना बोल देता है कि, 'यह आम का पेड़ काट देंगे तभी ठीक रहेगा!' अब यह तो भगवान की साक्षी में बात निकली, वह क्या बेकार जाएगी? परिणाम नहीं बिगड़ेंगे तो कुछ भी नहीं होगा। सबकुछ शांत हो जाएगा। बंद हो जाएगा!
भाव और इच्छा की उत्पत्ति प्रश्नकर्ता : भाव और इच्छा में क्या फर्क है?
दादाश्री : इस जगत् में जो दिखता है, उसे लोग भाव कहते हैं। भाव तो किसी को दिखते ही नहीं। खुद को भी पता नहीं चलता कि क्या भाव किया?
प्रश्नकर्ता : यह ज्ञान मिलने के बाद हमें बहुत सारे भाव होते हैं, तो उनसे कर्म ‘चार्ज' नहीं होंगे?
दादाश्री : भाव आपको होंगे ही किस तरह? 'आप' वापस फिर से 'चंदूभाई' बन जाओगे, तो भाव होंगे। यदि आप 'चंदूभाई' बन जाओगे तब अहंकार होगा, उसके बाद भाव होगा। मैं कर्ता हूँ' ऐसा भान रहे, तभी भाव होगा।
प्रश्नकर्ता : और ये जो इच्छाएँ होती हैं, वह कर्तापन नहीं है?