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आप्तवाणी-६
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बहुत हो गया! ये दान देते हैं और भीतर यहाँ की कीर्ति की इच्छा होती हो तो वह सब नींद में गया। परभव के हित के लिए यहाँ पर जो दान दिया जाता है, वह जागृत कहलाता है। हिताहित का भान अर्थात् 'खुद का हित किसमें है और खुद का अहित किसमें है' उस अनुसार जागृति रहे, वह! अगले जन्म का कोई ठिकाना नहीं हो और यहाँ दान दे, उसे जागृत किस तरह कहा जाएगा?
यह तो एक-एक शब्द यदि समझे, अर्थ ही समझे, 'फुल डेफिनेशन' समझे, तो वीतरागों के शब्द ऐसे हैं कि कल्याण हो जाए!
शुद्ध उपयोग का अभ्यास स्वरूप ज्ञान की प्राप्ति के बाद आपको क्या करना है?
आपको अब उपयोग रखना है। अभी तक आत्मा का 'डायरेक्ट' शुद्ध उपयोग था ही नहीं। प्रकृति जैसे नचाती थी, वैसे आप नाचते थे, और फिर कहते हो कि 'मैं नाचा! मैंने यह दान किया, मैंने ऐसा किया, वैसा किया, इतनी सेवा की!' अब आपको आत्मा प्राप्त हो गया, इसलिए आपको उपयोग में रहना है। अब आप पुरुष बने हैं और आपकी प्रकृति जुदा हो गई है। प्रकृति अपना काम किए बिना रहेगी नहीं, वह छोड़ेगी नहीं। और आपको, पुरुष को, पुरुषार्थ में रहना है यानी कि पुरुष को पुरुषार्थ करना है। 'ज्ञानीपुरुष' ने आज्ञा दी है, उसमें रहना है। उपयोग में रहना है।
उपयोग अर्थात् क्या? यों बाहर निकले और यों गधे जा रहे हों, कुत्ते जा रहे हों, बिल्ली जा रही हो और हम देखें नहीं और ऐसे ही चलते रहें, तो अपना उपयोग बेकार गया कहा जाएगा। उसमें तो उपयोग रखकर उसमें आत्मा देखते-देखते जाएँ तो वह शुद्ध उपयोग कहलाएगा। ऐसा शुद्ध उपयोग यदि कोई एक घंटा रखे तो उसे इन्द्र का अवतार मिलेगा, इतनी अधिक क़ीमती वस्तु है यह!
प्रश्नकर्ता : शुद्ध उपयोग व्यवहार में, व्यवसाय में रह सकता है क्या?